(सरदार पटेल जयंती: 31 अक्टूबर)
पक्के इरादों व अपने अदम्य पुरुषार्थ के कारण ‘लौहपुरुष’ कहलानेवाले सरदार वल्लभभाई पटेल का मन बचपन से ही मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत था । गांधीजी के सम्पर्क में आकर तो उनका हृदय पीड़ित लोगों के प्रति अत्यधिक करुणा से उमड़ पड़ा ।
जनसेवा में उनका पहला कार्य था गुजरात में फैली ‘बेगार प्रथा’ समाप्त करना । इस प्रथा में जमींदार लोग गरीब मजदूरों से दिनभर काम लेकर उन्हें यूँ ही भूखा-प्यासा रख के मजदूरी दिये बिना ही भगा देते थे । इस प्रथा से कराहते लोगों को मुक्त कराने हेतु वल्लभभाई व्याकुल हो उठे और गोधरा (गुजरात) के प्रांतीय राजनीतिक सम्मेलन के सभापति की हैसियत से उन्होंने इसके विरुद्ध कार्यवाहियाँ शुरू कीं । उनकी दृढ़ संकल्पशक्ति व पुरुषार्थ से भयभीत हो ब्रिटिश शासन ने गुजरात में ‘बेगार प्रथा’ को अवैध घोषित कर दिया ।
इसी बीच गुजरात के खेड़ा क्षेत्र में अकाल पड़ा और जनता भूख की ज्वाला में आहुति बनने लगी । उस पर सरकार लगान-वसूली की सख्ती भी कर रही थी । इस अन्याय से आहत वल्लभभाई ने खेड़ा की जनता को संगठित कर लगान-वसूली के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया । उनके सुयोग्य नेतृत्व में जनता की विजय हुई और लगान माफ हुआ । उन्होंने गाँव-गाँव घूमकर नंगे-भूखों के लिए वस्त्र-अन्न की व्यवस्था की तथा अपनी सम्पत्ति का बड़ा भाग अकाल-पीड़ितों की सहायता के लिए खर्च किया । ‘असहयोग तथा बहिष्कार आंदोलन’ के समय उन्होंने अपनी हजारों रुपये महीने की नौकरी छोड़ दी । वास्तव में वही व्यक्ति महान बनते हैं, उन्हींकी कीर्ति चिरस्थायी होती है जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर सबमें परमात्मा को निहारते हुए लोकसेवा में जुट जाते हैं ।
जब ‘बहिष्कार आंदोलन’ से प्रेरित होकर विद्यार्थियों ने विद्यालयों-महाविद्यालयों को छोड़ दिया तो उनकी शिक्षा के लिए सरदार पटेल ने अनेक राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना के साथ गुजरात विद्यापीठ की भी स्थापना की ।
वल्लभभाई के अहमदाबाद नगरपालिका के सभापतित्व काल में गुजरात में भयंकर बाढ़ आ गयी थी । गाँव-के-गाँव बह गये, जनता भूख से मरने लगी । तब वे 2000 स्वयंसेवकों के साथ पानी में फँसे मनुष्यों तथा पशुओं को बचाने हेतु बिना किसी साधन के स्वयं तैरकर जाते और उन्हें निकालकर बाहर लाते । अकाल व भुखमरी से मरती जनता की सच्ची सेवा देखकर विरोधी होने पर भी सरकार ने सरदार पटेल को (उस समय के) डेढ़ करोड़ रुपयों की धनराशि अकाल-पीड़ितों की सहायता के लिए दी । इससे उन्होंने भूखों व बेघरों हेतु अन्न, वस्त्र एवं मकानों का प्रबंध किया ।
एक समर्पित समाज-सेवक होने के साथ-साथ सरदार पटेल एक ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ नेता भी थे । देशसेवा में कई बार उन्हें जेल भेजा गया, यातनाएँ दी गयीं परंतु सभी कठिनाइयों को सहते हुए वे चट्टान की तरह अडिग रहे ।
पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘पवित्रता और सच्चाई, विश्वास और भलाई से भरा हुआ मनुष्य उन्नति का झंडा हाथ में लेकर जब आगे बढ़ता है, तब किसकी मजाल है कि बीच में खड़ा रहे ! आपके विचारों की ठोकर से पहाड़-के-पहाड़ भी चकनाचूर हो सकेंगे ।’’
सरदार पटेल में ये दैवी गुण स्वाभाविक ही थे । राष्ट्र के हितचिंतक, परहितपरायण, कर्मयोगी सरदार पटेल देशवासियों के सदैव आदर्श रहेंगे ।