Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

श्राद्धकर्म से पूर्वजों के साथ आपकी भी उन्नति होगी

तुम्हारे ऊपर ऋषि ऋण, पितृ ऋण और देव ऋण है इसलिए श्राद्ध किया जाता है । श्राद्ध में इन लोगों का सुमिरन होता है । जो श्रद्धा से किया जाय उसे ‘श्राद्ध’ कहा जाता है और श्रद्धासहित किये गये संकल्प में बहुत ताकत होती है । संकल्प श्रद्धारहित है तो बेकार है और श्रद्धासहित है तो तुम यहाँ कुछ करते हो और तुम्हारे पितृ किसी भी योनि में हैं - एक जन्म, दूसरा जन्म अथवा तीसरा जन्म भी हो गया... तीसरे जन्म में किसी भी योनि में हैं तो भी तुम्हारा किया हुआ श्रद्धा-भक्ति, प्रेम व मंत्र सहित तर्पण और श्राद्ध आदि उनको मदद देता है, सुख-शांति तथा परितृप्ति देता है ।

ज्ञानी करेगा तो दूसरे भी करेंगे

मैंने मेरे सद्गुरुदेव से पूछा था : ‘‘साँईं ! मैं घर में रहता था तो श्राद्ध करता था तो हमारी माताजी चाहती हैं कि अब भी करूँ लेकिन यह भी विधान है कि जब साधु हो जाते हैं तो श्राद्ध करने की जरूरत नहीं होती । तो मैं यदि घूमता-घामता घर जाऊँ और श्राद्ध करूँ तो ?’’

बोले : ‘‘रामजी ने श्राद्ध किये, आशाराम कर लेगा तो क्या घाटा है ! इससे तेरा ज्ञान थोड़े ही भाग जायेगा ! जब ज्ञानी करेगा तो दूसरे लोग भी करेंगे । अन्य काम करते हैं तो श्राद्ध भी कर लिया, हालाँकि जिसके कुल में कोई आत्मज्ञानी हो जाते हैं वह श्राद्ध न करे तो भी उसके पितर तर जाते हैं ।’’

इतना तो अवश्य करें

श्राद्ध में खीर का माहात्म्य है । गाय के दूध की खीर पितरों को 12 महीने तक तृप्ति देती है । तुम पितरों को बहुत व्यंजन न खिलाओ तो घाटा नहीं, तुम श्रद्धा से तर्पण तो कर सकते हो, कृतज्ञता के भाव अर्पित कर सकते हो कि ‘आपने हमारे लिए कमाया, हमको पालने-पोसने में आपको परिश्रम पड़ा, मेरे को जन्म नहीं देते तो मैं घोड़ा बनता, दिनभर में कितने चाबुक खाता, कितनी गालियाँ सहता ! मैं आपका कृतज्ञ हूँ कि मनुष्य-शरीर में आपने जन्म दिया मेरे पिता !’

यह पितृऋण चुकाने के लिए श्राद्ध के 15 दिन हैं और इस बात को भी दोहराने के लिए हैं कि ‘पिता आदि जब जिये थे तब जगत को कितना सत्य मानकर जिये थे ! वे चले गये इस दिन, ऐसे ही हमको भी जाना है ।’ तो श्राद्ध के दिन मौत को याद करने के मंगलकारी दिन हैं । ‘मृत्यु अवश्यम्भावी है । शरीर मरने के बाद भी हमारा अस्तित्व अमर है ।’ इस समझ का सु-लाभ लेने व सत्यस्वरूप ईश्वर की खोज करने में भी ये दिन मददरूप हैं ।

श्राद्ध पक्ष में उन ऋषियों के लिए भी तर्पण कर देना जिन्होंने हमारे लिए सद्ग्रंथ, सत्शास्त्र बनाये, जीव में से शिव बनाने की योग्यता रखी । मनुष्य को यदि ऋषिप्रदत्त ज्ञान न हो, ऋषियों के दिव्य संस्कार न हों तो मनुष्य ठीक से खाना नहीं खा सकता, कपड़ा नहीं पहन सकता, ठीक से जी भी नहीं सकता । बहन को ‘बहन’ भी नहीं कह सकता है ।

इससे तीनों प्रकार की उन्नति होगी

जिनके लिए श्राद्ध करते हैं, उनके लिए श्राद्ध के दिन सुबह उठकर संकल्प करना चाहिए । उन पूर्वजों का सुमिरन करके उनको याद दिलाना चाहिए कि ‘आपका शरीर नश्वर था लेकिन शरीर की मौत के बाद भी आपकी मौत नहीं हुई । आप अमर आत्मा हो, परमात्मा के अविभाज्य स्वरूप हो... आप मेरे पिता नहीं, शरीर के पिता थे । वास्तव में आपका आत्मा परमात्मा का है ।... तुम मेरी पत्नी नहीं थी, तुम्हारा शरीर मेरी पत्नी था । आप मेरे पति नहीं थे, आपका शरीर मेरा पति था । तुम मेरे बेटे नहीं थे, शरीर के बेटे थे । वास्तव में तुम चैतन्य हो, आत्मा हो, अमर हो, शुद्ध-बुद्ध हो और तुम्हारे आत्मा का संबंध परमात्मा के साथ है और मैं भी वही आत्मा का संबंध परमात्मा से स्थापित करूँ ऐसा शुभ संकल्प करना या आशीर्वाद देना... हरि ॐ ॐ ॐ...’ इस प्रकार का चिंतन करके अगर श्राद्धकर्म किया जाय तो जो भी पूर्वज आदि हैं उनकी आध्यात्मिक उन्नति होगी और आपको नैतिक, आध्यात्मिक व व्यावहारिक - तीनों उन्नतियों में मदद मिलेगी ।

(श्राद्ध से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध पुस्तक ‘श्राद्ध-महिमा’)