Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

हृदय को कुंठित न करें, प्रेम व मधुरता से भरें

आचार्य विनोबा भावे एक बार रेलगाड़ी में सफर कर रहे थे । रास्ते में गाड़ी नदी के पुल पर से गुजर रही थी । विनोबाजी के पास में बैठे हुए यात्री ने अपनी जेब में से 5 पैसे निकाल के खूब भाव व प्रेम से ‘गंगे हर’ कह के नदी में डाले । पास में बैठे हुए पाश्चात्य कल्चर से प्रभावित बुद्धिवाले, अपने को सुधरा हुआ, पढ़ा-लिखा माननेवाले किसी आदमी ने यह देखा । वह चिढ़ के बोल उठा : ‘‘एक तो भारत गरीब देश है । उसमें भी तुम्हारे जैसे भगतड़े सम्पत्ति को बेकार में ऐसे बहते हुए जल में डाल दें फिर भारत की दुर्दशा नहीं होगी तो और क्या होगा ?’’


विनोबाजी दोनों के बीच में बैठे थे । वे तो संत थे, तटस्थ दृष्टिवाले थे । उन्होंने देखा कि इस भाई को थोड़े सत्संग की जरूरत है । ये भाई पढ़े-लिखे तो बहुत हैं, दिमाग में थोथे पोथे भर लिये हैं लेकिन दिल का खजाना प्रकट करने की कला नहीं जानते हैं । जैसे रहुगण राजा पर कृपा करके जड़भरत मुनि ने उन्हें उपदेश दिया था, वैसे ही उस साहब पर कृपा करके विनोबाजी ने कहा : ‘‘भाई ! उसने 5 पैसे नदी में डाले इतने में तो तुम भाषण देने लग गये लेकिन तुम इस देश में बिना जरूरत के यह टाई और सूट-बूट के लिए पैसे खर्च करते हो, वह व्यर्थ नहीं लगता ? पफ-पाउडर में, भोग-विलास के साधनों में तुम्हारे जैसे कई लोगों के लाखों-करोड़ों रुपये व्यर्थ खर्च नहीं होते हैं ? इतना खर्च करके भी तुम्हारे हृदय तो संकीर्ण ही रहते हैं, कुंठित ही रहते हैं जबकि यह तो बहती सरिता को भगवान का एक रूप मानता है, सूर्यनारायण में उसे प्रभु का प्रकाश नजर आता है । यह सरिता अनगिनत जीव-जंतुओं का, लाखों मानवों का पोषण कर रही है । यह प्रभु की अनमोल देन है । इसे देख के उसे भगवान की विराट सत्ता की स्मृति हो आयी । सूर्यनारायण को भी प्रणाम करके ‘सूर्य का भी सूर्य (प्रकाशक) ‘परमात्मा’ है, उसका प्रकाश (ज्ञान) मेरे हृदय में प्रकट हो’ - ऐसी भावना करके उसने नदी में 5 पैसे चढ़ाये तो उसका हृदय कितना शुद्ध और पवित्र हुआ ! उसके भाव कितने उन्नत हुए ! हृदय की त्यागवृत्ति और प्रेमवृत्ति - दोनों का विकास हुआ ।

 

तुम अपनी कमाई का जो उपयोग करते हो उससे तो तुम्हारी वृत्ति भोगप्रधान, विलासी बन जाती है । फिर भी तुम्हारे जैसे लोग ऐसे भक्तों की श्रद्धा को ‘अंधश्रद्धा’ कह के उनका अपमान करते हैं लेकिन उसे ‘अंधश्रद्धा’ कहना भी अंधश्रद्धा है । तुम लोग बीड़ी-सिगरेट, शराब आदि में श्रद्धा करते हो और कितने पैसे खर्च कर देते हो ! तुम्हारी नजर में बहती सरिता का पानी हाइड्रोजन-ऑक्सीजन का मिश्रण है लेकिन इस भक्त की नजर में तो प्रभु की कृपा बह रही है जो कितनों ही को जीवन देती है ! ऐसे भक्त बाहर से भोले-भाले दिखते हैं किंतु उनके पास जो भीतर की शांति और प्रेम है उतना तुम्हारे पास है क्या ? इसने 5 पैसे नदी में चढ़ाकर उस विराट की स्मृति जगायी कि ‘हे सर्वेश्वर ! सरिता में भी तू, सूर्यनारायण में भी तू । सबमें तू-ही-तू, तेरी लीला अपरम्पार है मेरे प्रभु !’

 

ऐसा भाव करके उसने अपने दिल को प्रेम और मधुरता से भर दिया है जबकि तुमने उसकी श्रद्धा को तुच्छ कह के अपने हृदय को कुंठित कर लिया है । बोलो, किसने गँवाया और किसने सच्ची कमाई की ? उसने ही सच्ची कमाई कर ली है ।’’

 

जीवन के हर मौके पर तुम भी अपने हृदय को हृदयेश्वर के प्रेम से, मधुरता से भरते रहोगे तभी तुम्हारी सच्ची कमाई होगी । यहाँ की रुपये-पैसे की कमाई का वास्तव में कोई मूल्य नहीं है क्योंकि ‘खाली हाथों वे गये जिन्हें करोड़ और लाख ।’ हाँ, अगर उन रुपये-पैसे को सत्कर्म में, सेवा में लगाओगे तो वह धन तुम्हें सच्ची कमाई का फल जरूर देगा । हृदय में हृदयेश्वर की प्रीति और आनंद जगायेगा ।