चींटी भी देखती है, भले ही नाक से देखती है और जहाँ-जहाँ श्रवण हो रहा है सब वही (ब्रह्म-परमात्मा) है, साँप आँख से सुनता है । ऐसे-ऐसे इन्द्रियवाले प्राणी देखने में आते हैं । यह नहीं है कि सब इन्द्रियों के लिए अलग-अलग छेद ही होना जरूरी है । सबकी आँँख में बैठकर वही देख रहा है, सबके कान में बैठ के वही सुन रहा है, सबके मुख में बैठ के वही मौख्य हो रहा है ।
विश्वतश्चक्षुः विश्वतोमुखः ।
ज्ञानशक्ति का उपलक्षण है चक्षु । जितने भी ज्ञान हो रहे हैं सब परमात्मा का ही ज्ञान है । आँख में आकर वही देख रहा है, कान में आकर वही सुन रहा है, त्वचा में आकर वही छू रहा है, रसना में आकर वही रस ले रहा है । और, विश्वतोमुखः सर्व भोग का उपलक्षण है । जितने भी भोग्य हो रहे हैं :
भोक्ता भोग्यं प्रेरितारं च मत्वा...
‘भोक्तैव भोग्यभावेन सदा सर्वत्र सन्निष्ठितः ।’
भोक्ता ही भोग्यरूप से सर्वत्र अवस्थित है, वही भोक्ता है, और कोई दूसरा भोक्ता नहीं है । कोई दूसरा ज्ञाता नहीं है, वही ज्ञाता है । ज्ञानेन्द्रियों की उपाधि से वही ज्ञाता है, वही मन और इन्द्रियों की उपाधि से भोक्ता है ।
जो इस परब्रह्म-परमात्मा को जान लेता है वह अमृतस्वरूप हो जाता है । अमृतस्वरूप हो जाता है माने स्वयं सबके लिए स्वादिष्ट हो जाता है । उसको देखकर लोगों की आँखें तृप्त होती हैं, उसको छू के लोगों को सुख मिलता है, उससे बात करके लोगों को मजा आता है । जिसका मानस निःस्पृह है और जिसका हृदय शीतल है, सब लोग उसके साथ मैत्री जोड़ते हैं । तो अमृता भवन्ति माने सत्वन्तो भवन्ति, ज्ञानवन्तो भवन्ति, आनन्दवन्तो भवन्ति - सत्-चित्-आनंद हो जाता है । उनकी मृत्यु नहीं होती माने वे अविनाशी सत् हो जाते हैं और जो अविनाशी सत् है वही चित् है इसलिए वे ज्ञानस्वरूप हैं और आनंदस्वरूप हो जाते हैं और अद्वितीय हैं वे जिन्होंने अपने-आपको ब्रह्म के रूप में जान लिया ।
अथेतरे दुःखमेवापियन्ति - और जो नहीं जानते वे ?
बोले, दुःखमेव अपियन्ति - वे बारम्बार दुःख, बारम्बार दुःख... उनकी गति ही दुःख की ओर है । बस, दो ही रास्ते हैं - परब्रह्म-परमात्मा की ओर चलो तो सुख और उसकी ओर पीठ करके चलो तो दुःख । तुम किधर जा रहे हो ? तुम्हारी यात्रा सुख की दिशा में हो रही है कि दुःख की दिशा में ? जो सुख की ओर नहीं चल रहा है वह दुःख की ओर जा रहा है - अथेतरे दुःखमेवापियन्ति ।
बोले, वह ब्रह्म है कहाँ बाबा ?
सर्वाननशिरोग्रीवः सर्वभूतगुहाशयः ।
सर्वव्यापी स भगवांस्तस्मात्सर्वगतः शिवः ।।
(श्वेताश्वतर उपनिषद् : 3.11)
वह भगवान सर्व मुखोंवाला, सर्व शिरोंवाला और सर्व ग्रीवाओंवाला, सर्व जीवों के अंतःकरण में स्थित और सर्वव्यापक है । अतः वह सर्वगत और शिव है । वह महान, प्रभु, पुरुष, इस निर्मल प्राप्ति के लिए अंतःकरण को प्रेरित करनेवाला, सबका शासक, प्रकाशस्वरूप और अव्यय है ।
...अमृतास्ते भवन्ति अथेतरे दुःखमेवापियन्ति । (श्वेताश्वतर उपनिषद् : 3.10)
माँ के समान हितैषी श्रुति है । कोटि-कोटि माँ से भी अधिक जीव-शिशु का अभीष्ट - कल्याण चाहनेवाली यह श्रुति भगवती यह प्रेरणा देती है कि परमात्मा को जानो । ईश्वर को पहचान लेना, यह सबसे बढ़िया है और ईश्वर ही एक ऐसी चीज है कि जिसे पहचान लो तो फिर कभी दुःख नहीं होगा । एक बार ईश्वर पहचान में आ जाय तो फिर उसके बाद चाहे तुम जागो, चाहे सोओ, चाहे तुम सपना देखो, चाहे रोओ, चाहे गाओ, चाहे चिल्लाओ और चाहे मरो, चाहे जियो - वह फिर अनुभव से ओझल नहीं होता, उसको सँभालना नहीं पड़ता कि ‘हाय-हाय समाधि नहीं रही’, कि ‘हाय-हाय स्मृति नहीं रही’, कि ‘हाय मैं बेहोश हो गया’ - यह सब कुछ नहीं करना पड़ता । तो एक बार उसकी पहचान होना बहुत जरूरी है । वही अविद्या को निवृत्त करती है । वह पहचान ही सारे दुःख को काटती है । एक बार ईश्वर से जान-पहचान होना बहुत जरूरी है ।
श्रुति ने यह बात बतायी : य एतद्विदुरमृतास्ते भवन्ति - जिन्होंने इसको जान लिया वे तो अजर हो गये, अमर हो गये - अमृतस्वरूप हो गये स्वयं, मानो वे सच्चिदानंदघन ब्रह्म हो गये ।
घातक बीमारियों का घर है विदेशी गायों का दूध
भारत में श्वेत क्रांति लाने के बहाने विदेशी नस्ल की गायों को बढ़ावा देकर देशी नस्ल को खत्म करने का विदेशी कुचक्र रचा गया ।
विदेशी संकरित गोवंश की हानियाँ
डॉ. उत्तम माहेश्वरी ने अपने शोध प्रबंध ‘द काऊ थेरेपी’ में स्पष्ट किया है कि ‘जर्सी आदि विदेशी नस्लें अप्राकृतिक पशु हैं । वैज्ञानिकों ने कुछ पशुओं के जीन्स के साथ छेड़छाड़ कर इन्हें बनाया है ।’ उन्होंने जर्सी गाय को रोगों का घर कहा और इसकी तुलना विशालकाय सुअर से की । मांसाहारियों में सुअर का मांस खानेवालों में आँतों का कैंसर अधिक पाया जाता है, इसी तरह शाकाहारियों में जर्सी गाय का दूध पीनेवालों में आँतों का कैंसर अधिक पाया गया है । वैज्ञानिक डॉ. कीथ वुडफोर्ड ने अपनी पुस्तक ‘द डेविल इन द मिल्क’ में लिखा है कि ‘विदेशी गायों का दूध मानव-शरीर में ‘बीटा केसोमॉर्फीन-7’ नामक विषाक्त तत्त्व छोड़ता है । इसके कारण मधुमेह, धमनियों में खून जमना, दिल का दौरा, ऑटिज्म और स्किजोफ्रेनिया (एक प्रकार का मानसिक रोग) जैसी घातक बीमारियाँ होती हैं ।’ चिकित्सकों के अनुसार जर्सी या फ्रिजीयन गायों के शरीर, खुरों तथा मूत्र व गोबर से विषैले कीटाणु विकसित होकर फैलते हैं, जिससे आसपास का पर्यावरण विषाक्त हो जाता है । उसमें साँस लेनेवालों के फेफड़ों में वे विषाणु प्रवेश करके नयी-नयी बीमारियाँ पैदा करते हैं, जिससे हजारों लोगों की मौत हो चुकी है ।
दूसरी ओर देशी गाय के गो-रसों (दूध, घी, गोबर, गोझरण आदि) से व गाय के सम्पर्क में रहने, स्पर्श व सेवा करने से कई असाध्य रोग भी मिट जाते हैं । राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल के डॉ. डी.के. सदाना कहते हैं : ‘‘भारतीय गोवंश के मूत्र में रेडियोधर्मिता सोखने की क्षमता पायी जाती है, जो भोपाल गैस त्रासदी के दौरान भी सिद्ध हो चुकी है । गौ-गोबर से लीपे हुए घरों पर कम असर हुआ था । देशी गाय के दूध में स्वर्ण-क्षार भी होते हैं । ‘मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया’ ने भी देशी गाय के दूध को सर्वोत्तम माना है ।’’ वैज्ञानिक डॉ. मनोज तोमर के अनुसार ‘देशी गाय के दूध से बने दही में ऐसा जीवाणु पाया जाता है जो एड्स-विरोधी गुणधर्म रखता है ।’
जर्सी आदि विदेशी संकरित गायों का दूध भैंस के दूध से भी अधिक हानिकारक होता है । अतः इनके दूध का उपयोग तो कदापि न करें ।