(दूरदर्शन पर पूर्व में प्रसारित पूज्य बापूजी का पावन संदेश)
प्रश्न : सच्चा सुख और सच्चा सत् क्या है ?
पूज्य बापूजी : वस्तु, इन्द्रिय और मन की वृत्ति से जो सुखाभास होता है उसे मिथ्या सुख बोलते हैं । वस्तु, इन्द्रिय-सुख के न होने पर भी या मन के विषयों को न भोगते हुए भी मन परम शांतस्वरूप आत्मा में जो विश्रांति पाता है उसे सच्चा सुख बोलते हैं ।
एक होता है सत्य, दूसरा होता है सत् । दो और दो चार सत्य है, यह सामाजिक सत्य है लेकिन दो और चार का साक्षी सत् है । ‘मुझे जंतु ने काटा है, मैं पीड़ित हो रहा हूँ, दुःखी हूँ’ - यह व्यवहारकाल में सत्य है लेकिन जहाँ से ‘मैं’पना उठता है, वहाँ यह दुःख नहीं पहुँच सकता है । यह दुःख इन्द्रियों को होता है, मन को होता है, शरीर को होता है, मुझ चैतन्य में नहीं आता है । जहाँ दुःख की पहुँच नहीं और सुख का आकर्षण नहीं वह सत् है और जो दुःख-सुख में प्रभावित होता है वह सामाजिक सत्य माना जाता है । तो प्रकृति की वस्तुओं को ‘मैं-मेरा’ मानकर सुखी-दुःखी होना यह व्यावहारिक सत्य है लेकिन इन सबको मिथ्या और परिवर्तनशील समझ के अपने साक्षीस्वरूप में जग जाना यह पारमार्थिक सत् है ।
प्रस्तोता (होस्ट) : इन सब बातों से मैं यह समझ पाया कि संसार को, व्यक्तियों को, लोगों को शांति के लिए सब कुछ छोड़ देना चाहिए ।
पूज्यश्री : नहीं-नहीं-नहीं... । सब कुछ छोड़ना नहीं है अपितु सब कुछ में जो सत्यबुद्धि की बेवकूफी घुसी है, उसे छोड़ना है । सब कुछ जो दिखता है वह परिवर्तनशील है लेकिन जिससे दिखता है वह सत् है । तो सत् को प्रेम करें और सत् के नाते सब कुछ का सदुपयोग करें । व्यक्ति सदुपयोग नहीं करेगा और सब कुछ छोड़ेगा तो सब कुछ कितना छोड़ पायेगा ? शरीर को तो नहीं छोड़ सकता है और शरीर है तो फिर सब कुछ चाहिए खाने को, पीने को, रहने को, देने को । लेकिन जो आसक्ति है उसे छोड़ सकते हैं ।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ।
(गीता : 5.15)
अज्ञान से ज्ञान आवृत हो गया इसलिए हम लोग मोहित हो जाते हैं । उलटे ज्ञान को सच्चा मान लेते हैं । है तो बदलनेवाला लेकिन उसको चिपकाये रखते हैं । बचपन को कितना भी सँभाला लेकिन चला गया, जवानी को कितना भी थामा परंतु चली गयी, फिर बुढ़ापा आयेगा, कितना भी सुरक्षित रखो पर चला जायेगा । जो चला जानेवाला है उसका सदुपयोग करें, उसका बहुजनहिताय-बहुजनसुखाय उपयोग करने से अशांति मिटेगी, शांति आयेगी और सत् में प्रवृत्ति कर लें कि ‘भाई ! दुःख आया और चला गया लेकिन कोई जाननेवाला तो है । सुख आया और चला गया, कोई जाननेवाला तो है । इन दोनों को जाननेवाला मैं कौन हूँ ?’- ऐसा अपने को प्रश्न करें रात को सोते समय और सुबह उठते समय । तो वह कौन है ? वह अपने-आप कृपा करके प्रकट होने के द्वार खोल देगा ।
प्रश्न : आपसे प्रेरणा पाकर करोड़ों श्रद्धालु अपने जीवन में ज्ञानज्योति जलाकर जीवन को सफल बना रहे हैं । अपने जीवन की आप ऐसी कोई प्रेरक बात बताइये जिससे उनके जीवन की ज्ञानज्योति और ज्यादा प्रकाशमान हो और उनके जीवन का मार्ग और ज्यादा खुले, साफ हो ।
पूज्य बापूजी : लाभदायी एवं प्रेरक बातें तो बहुत सारी हैं । खुलेआम एक छोटी-सी कह देता हूँ । रात्रि को सोते समय हम कभी चिंता लेकर, थकान ले के नहीं सोते हैं । ‘जो दिनभर हुआ, वह जिसकी सत्ता से हुआ
उसको अर्पण ! मैं निश्चिंत नारायण की गोद में जा रहा हूँ ।’ ऐसे परमेश्वर का चिंतन करते-करते आनंद, निर्विषय आनंद आता है, फिर हम सोते हैं । रात्रि का आखिरी सेकंड सुबह का पहला सेकंड बन जाता है । सुबह जब उठते हैं तो उसी शांत आत्मा में, ईश्वर में विश्रांति पाते-पाते थोड़ा-सा माधुर्य का अनुभव करते-करते फिर उठते हैं । श्रीकृष्ण ऐसा करते थे यह बात शास्त्रों से मैंने जानी । ‘आज यह-यह शुभ करना है...’- ऐसा सुबह संकल्प कर लेते थे और अपने को प्रसन्न रखते थे । आम लोगों को प्रेरणा पानी है तो सुबह उठकर यह संकल्प करना चाहिए कि ‘आज कम-से-कम 4 आदमियों को हँसाऊँगा, दो आदमियों के आँसू पोंछूँगा ।’