Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

सब लोग किसे चाहते हैं ?

जो व्यक्ति अच्छा व्यवहार करता है, ईमानदार है, सच्चा है तो उसे सब पसंद करते हैं । उसके पास बैठने में, उससे बात करने में हमें आनंद मिलता है । नम्रता, सहनशीलता, साहस, कार्य में लगन, आत्मविश्वास, विश्वासपात्रता, दयालुता, ईमानदारी, दृढ़ निश्चय, तत्परता, सत्यनिष्ठा इत्यादि अनेक उत्तम गुण हैं, जिनके मेल से मनुष्य का चरित्र बनता है । चरित्र का धन कोई साधारण धन नहीं है । इनमें से कुछ गुणों को भी पूरी तरह धारण करने से मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है ।


चरित्र-निर्माण कब और कैसे ?

चरित्र-निर्माण का सबसे अच्छा समय है बचपन । उस समय अच्छी आदतें सीखना आसान होता है । ये आदतें जीवनभर काम आती हैं । बालकों को जो बातें बतायी या सिखायी जाती हैं, वे उनके मन पर पक्की हो जाती हैं । गुरुजनों का, सद्गुरु का सम्मान करने से और उनकी आज्ञा मानने से विद्या प्राप्त होती है । अर्जुन ने इसी प्रकार गुरु से धनुर्विद्या प्राप्त की थी । भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने गुरु वसिष्ठजी के आज्ञापालन से ही आत्मविद्या पायी थी ।

मनुष्य के जीवन की नींव है चरित्र । शब्दों में नहीं बल्कि व्यवहार में प्रकट होते हैं चरित्र के गुण । दिखावट-बनावट से मनुष्य कुछ समय के लिए भले ही किसीको धोखे में रख ले परंतु ज्यादा समय तक धोखे में नहीं रख सकता । लोग चरित्रवान व्यक्ति की बात का विश्वास करते हैं । उसे उपयोगी तथा हितकारी मानते हैं । चरित्रवान दूसरों को धोखा नहीं देता, किसीको नीचे गिराने की कोशिश नहीं करता । वह ऐसी बात का प्रण नहीं करता, जिसे वह पूरा न कर सके ।


उत्तम चरित्र क्या है ?

सच्चरित्रवान बनने के लिए मन, वाणी तथा शरीर से किसीको कष्ट मत दो । सच बात को भी प्रिय शब्दों में कहो । किसीकी चीज न चुराओ, निंदा न करो । मान की लालसा मत करो । स्नान से शरीर की तथा ईर्ष्या-द्वेष, वैर-विरोध छोड़ने से मन की शुद्धि होती है । सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख सहते हुए अपने कर्तव्य को करो । सत्साहित्य का अध्ययन करते रहो । इन्द्रियों और मन को वश में रखकर अपने स्वभाव को सरल बनाओ । दुःखियों की सेवा करो । पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘परमात्मा से दूर ले जानेवाली जो दुष्ट वासनाएँ हैं, वे सब दुश्चरित्र हैं । जब हम दुश्चरित्रों से दूर होते हैं तो हम सच्चरित्र होते हैं । सच्चरित्रता से पुण्य होते हैं और पुण्य से हमको सत्संग, संत के दर्शन और परमात्मा में रुचि होती है ।

पुन्य पुंज बिनु मिलहिं न संता ।’’ (संत तुलसीदासजी)

चरित्रवान के लक्षण 

चरित्रवान मनुष्य बहुत अधिक चतुर बनने का प्रयत्न नहीं करता । सीधा-सच्चा व्यक्ति लोगों को अधिक प्रिय होता है । चरित्रवान अपने कार्यों की बड़ाई करके दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयत्न नहीं करता । वह धैर्यवान तथा सहनशील होता है । वह दूसरों के मत को ध्यान एवं धैर्य से सुनता है । चाहे उसे दूसरे का मत ठीक न लगता हो फिर भी सुनने का धैर्य उसमें होता है । यदि वह किसीको उसकी भूल बताता है तो बड़ी नरमी से, तरीके से और उसके सुधार के लिए बताता है । चरित्रवान किसीका उत्साह भंग नहीं करता, वह किसीका दिल नहीं तोड़ता, वह सभीको नेक काम करने की सलाह देता है एवं उत्साहित करता है । वह स्वयं भी हिम्मत नहीं हारता । चरित्रवान मनुष्य सुख और दुःख में सम रहता है । विपत्ति के समय में वह सगे-संबंधियों या मित्रों को धोखा नहीं देता । ऐसी ही मित्रता श्रीकृष्ण ने सुदामा के प्रति निभायी थी । मित्रता निभाना भी सच्चरित्रता की निशानी है ।

चरित्र : मानव की एक श्रेष्ठ सम्पत्ति 

जो अपना कल्याण चाहता है उसे चरित्रवान बनना चाहिए । यदि हम चरित्रवान हैं, सत्कृत्य करते हैं तो हमारी बुद्धि सही निर्णय लेती है, हमें सन्मार्ग पर प्रेरित करती है । सन्मार्ग पर चलकर हम परमात्मप्राप्ति के लक्ष्य को आसानी से पा सकते हैं ।

चरित्र मानव की श्रेष्ठ सम्पत्ति है, दुनिया की समस्त सम्पदाओं में महान सम्पदा है । मानव-शरीर के पंचभूतों में विलीन होने के बाद भी जिसका अस्तित्व बना रहता है, वह है उसका चरित्र । चरित्रवान व्यक्ति ही समाज, राष्ट्र व विश्व-समुदाय का सही नेतृत्व और मार्गदर्शन कर सकता है । अपने सच्चारित्र्य व सत्कर्मों से ही मानव चिरआदरणीय हो जाता है । जब हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य सत्स्वरूप ईश्वर होता है तो सच्चरित्रता में हम दृढ़ होते जाते हैं । सच्चरित्रवान बनने के लिए अपना आदर्श ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों को बनाना चाहिए ।

जिसके पास सच्चरित्र नहीं है वह बाहर से भले बड़ा आदमी कहा जाय परंतु उसे अंदर की शांति नहीं मिलेगी एवं उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं होगा । जिसके पास धन, सत्ता कम है परंतु सच्चारित्र्य-बल है, उसे अभी चाहे कोई जानता, पहचानता या मानता न हो परंतु उसके हृदय में जो शांति रहेगी, आनंद रहेगा, ज्ञान रहेगा वह अद्भुत होगा और उसका भविष्य परब्रह्म-परमात्मा के साक्षात्कार से उज्ज्वल होगा ।