Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

गुण-दोषों का दर्शन साधक के लिए घातक

भगवान श्रीकृष्ण का उपदेश सुनकर उद्धवजी ज्ञानसम्पन्न हो गये । इससे अत्यधिक ज्ञातृत्व हो जाने के कारण ज्ञान-अभिमान होने की सम्भावना हुई । ‘सारा संसार मूर्ख है और एक मैं ज्ञाता हूँ’ - ऐसा जो अहंकार बढ़ता रहता है, वही गुण-दोषों की सर्वदा एवं सर्वत्र चर्चा कराता है । जहाँ गुण-दोषों का दर्शन होता है, वहाँ सत्य, ज्ञान का लोप हो जाता है ।

साधकों के लिए इतना ज्ञान-अभिमान बाधक है । ईश्वर भी यदि गुण-दोष देखने लगें तो उनको भी बाधा आयेगी । इस प्रकार गुण-दोषों का दर्शन साधक के लिए पूरी तरह घातक है । इसलिए प्रश्न किये बिना ही श्रीकृष्ण उद्धव को उसका उपाय बताते हैं । जिस प्रकार बालक को उसका हित समझ में नहीं आता, अतः उसकी माँ ही निष्ठापूर्वक उसका खयाल रखती है, उसी प्रकार उद्धव के सच्चे हित की चिंता श्रीकृष्ण को थी । उद्धव का जन्म यादववंश में हुआ था और यादव तो ब्रह्मशाप से मरनेवाले थे । उनमें से उद्धव को बचाने के लिए श्रीकृष्ण उसे सम्पूर्ण ब्रह्मज्ञान बता रहे हैं । जहाँ देहातीत ब्रह्मज्ञान रहता है, वहाँ शाप का बंधन बाधक नहीं होता । यह जानकर ही श्रीकृष्ण ब्रह्मज्ञान का उपदेश देने लगे ।

श्रीकृष्ण कहते हैं : ‘हे उद्धव ! संसार में मुख्यरूप से 3 गुण हैं । उन गुणों के कारण लोग भी 3 प्रकार के हो गये हैं । उनके शांत, दारुण और मिश्र - ऐसे स्वाभाविक कर्म हैं । उन कर्मों की निंदा या स्तुति हमें कभी नहीं करनी चाहिए क्योंकि एक के भलेपन का वर्णन करने से उन्हीं शब्दों से दूसरों को बुरा बोलने जैसा हो जाता है ।

संसार परिपूर्ण ब्रह्मस्वरूप है इसलिए निंदा या स्तुति किसी भी प्राणी की कभी भी नहीं करनी चाहिए । सभी प्राणियों में आत्माराम है इसलिए प्राण जाने पर भी निंदा या स्तुति नहीं करें । उद्धव ! निंदा-स्तुति की बात सदा के लिए त्याग दो, तभी तुम्हें परमार्थ साध्य होगा और निजबोध से निज स्वार्थ प्राप्त होगा । उद्धव ! समस्त प्राणियों में भगवद्भाव रखना, यही ब्रह्मस्वरूप होने का मार्ग है । इसमें कभी भी धोखा नहीं है । जहाँ से अपाय (खतरे) की सम्भावना हो, यदि वहीं भगवद्भावना दृढ़ता से बढ़ायी जाय तो जो अपाय है, वही उपाय हो जायेगा । इस स्थिति को दूर छोड़ जो ‘मैं ज्ञाता हूँ’ ऐसा अहंकार करेगा और निंदा-स्तुति का आश्रय लेगा वह अनर्थ में पड़ेगा ।’