Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

सबसे बड़ी पूजा : मानस पूजा

देवो भूत्वा देवं यजेत् । शिव होकर शिव की पूजा करो । साधक कहता है कि ‘हे भोलेनाथ ! हे चिदानंद !! मैं कौन-सी सामग्री से तेरा पूजन करूँ ? मैं किन चीजों को तेरे चरणों में चढ़ाऊँ ? छोटी-छोटी पूजा की सामग्री तो सब चढ़ाते हैं, मैं मेरे मन और बुद्धि को ही तुझे चढ़ा रहा हूँ ! बिल्वपत्र लोग चढ़ाते हैं लेकिन तीन बिल्वपत्र अर्थात् तीन गुण (सत्त्व, रज और तम) जो शिव पर चढ़ा देते हैं, वे शिव को बहुत प्यारे होते हैं । दूध और दही से अर्घ्य-पाद्य पूजन तो बहुत लोग करते हैं किंतु मैं तो मेरे मन और बुद्धि से ही तेरा अर्घ्य-पाद्य कर लूँ । घी-तेल का दीया तो कई लोग जलाते हैं लेकिन हे भोलेनाथ ! ज्ञान की आँख से देखना, ज्ञान का दीया जलाना वास्तविक दीया जलाना है । हे शिव ! अब आप समझ का दीया जगा दीजिये ताकि हम इस नश्वर देह में समझदारी से रहें । पंचामृत से आपका पूजन होता है । बाहर का पंचामृत तो रुपयों-पैसों से बनता है लेकिन भीतर का पंचामृत तो भावनामात्र से बन जाता है । अपनी पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ तेरी सत्ता से संचालित हैं ऐसा समझकर मैं तुझे पंचामृत से स्नान कराता हूँ । तेरे मंदिर में घंटनाद होता है । अब घंटनाद तो ताँबे-पीतल के घंट से बहुत लोग करते हैं, मैं तो शिवनाद और ॐनाद का ही घंटनाद करता हूँ । हमको भगवान शिव ज्ञान के नेत्रों से निहार रहे हैं । हम पर आज भगवान भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हैं ।’

दृढ़ संकल्प करें कि ‘मेरे मन की चंचलता घट रही है, मुझ पर शिव-तत्त्व की, महाशिवरात्रि की और सत्संग की कृपा हो रही है । हे मन ! तेरी चंचलता अब तू छोड़ । राजा जनक ने, संत कबीरजी ने जैसे अपने आत्मदेव में विश्रांति पायी थी, श्रीकृष्ण की करुणा और कृपा से जैसे अर्जुन की चंचलता और खिन्नता हट गयी थी और अर्जुन अपने-आपमें शांत हो गया, अपने आत्मा में जग गया, उसी प्रकार मैं अपने आत्मा में शांत हो रहा हूँ, अपने ज्ञानस्वरूप, साक्षी-द्रष्टास्वरूप में जग रहा हूँ ।’ इससे तुम्हारा मन देह की वृत्ति से हटकर अंतर्मुख हो जायेगा । यह चौरासी लाख योनियों के लाखों-लाखों चक्करों के जंजाल से मुक्ति का फल देनेवाली महाशिवरात्रि हो सकती है ।