Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

आत्मनिरीक्षण के द्वारा परमात्मदर्शन आसान

कितने ही साधक-भक्त ऐसे हैं जो लम्बे अर्से से साधना कर रहे हैं । साधना में प्रगति के लिए साधक के जीवन में स्वयं का मूल्यांकन आवश्वक है । साधक को खुद ही अपना आत्म-विश्लेषण करना चाहिए । जितना ठीक ढंग से हम स्वयं अपना निरीक्षण कर सकते हैं उतना अन्य नहीं कर सकता, क्योंकि हम जितने अच्छे से अपने गुण-दोषों से, कमजोरियों से परिचित होते हैं, उतने अन्य व्यक्ति नहीं होते । जिज्ञासु साधकों को निम्नांकित प्रश्नों का उत्तर स्वयं ही खोजना चाहिए ताकि साधना में शीघ्र उन्नति होः

  • साधना में रुचि दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है अथवा घट रही है या उदासीनता आ रही है?
  • सत्संग सुनने के बाद उसे जीवन में उतारने की जिज्ञासा भी है या नहीं?
  • ध्यान-भजन-सत्संग का लक्ष्य आपके लिए परमात्मा की प्राप्ति है या नश्वर संसार के क्षणभंगुर भोग?
  • शास्त्रवचन और संत-उपदेश में श्रद्धा है या नहीं?
  • मंत्रदीक्षा के समय साधना की जो पद्धतियाँ बतायी गयी थीं, उनसे कितने लाभान्वित हुए हैं या याद ही नहीं है?
  • संसार के प्रति आकर्षण कम हुआ है या ज्यों-का-त्यों बना हुआ है?
  • कहीं आप सेवा-साधना के बहाने प्रशंसा के रोग से तो ग्रस्त नहीं हो गये हैं?
  • भोगों से मन उपराम हुआ है या अभी भी उनमें सुखबुद्धि बनी हुई हैं?
  • त्रिकाल संध्या का नियम माह में कितनी बार पूर्ण करते हैं? ध्यान-भजन और सेवा के लिए दिनभर में कितना समय देते हैं?
  • क्या कभी प्रभु के साथ एकाकार हो जाने की तड़प मन में उठती है?
  • मंत्रजाप करते-करते कहीं आप मनोराज में तो नहीं उलझ जाते हैं?
  • चित्त की चंचलता, मन की मनमुखता शांत होकर अंतर का आराम प्रगट हो रहा है या नहीं?
  • सुख में सुखी और दुःख में दुःखी होने की प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर आप अग्रसर हो रहे हैं या नहीं?
  • सत्संग में जाने के बाद सत्संग का, मनुष्य जीवन का महत्त्व समझ में आया है अथवा रोजी-रोटी के लिए ही जीवन पूरा हो रहा है?
  • जीवन में निर्भयता, निश्चिंतता और प्रसन्नता जैसे उन्नति के परम गुणों का प्रादुर्भाव हो रहा है?
  • मौन, एकांत, अनुष्ठान के प्रति रुचि कितनी है?
  • उद्वेग के प्रसंग में आप कितना धैर्य और संयम रख पाते हैं ?

अपने जीवन में किसी प्रकार की कमियाँ दिखें ते सुबह 10-12 प्राणायाम करके, उन कमियों को निकालने के लिए सद्गुणों का विचार कीजिए । इस प्रकार सद्गुणों विचार करने से आपके दुर्गुण धीरे-धीरे निवृत्त होते जायेंगे एवं हृदय सद्गुणों से भरता जायेगा । सद्गुणों के विकास से सर्वगुणसंपन्न परमात्मा का दीदार करना भी आसान होता जायेगा ।