Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

विवाहित युवक-युवतियों के लिए

प्रत्येक नवविवाहित युवक-युवती को डॉ. कोवन की ये पंक्तियाँ अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए : ‘नयी शादी करके पुरुष तथा स्त्री विषय-भोग की दलदल में जा धँसते हैं । विवाह के प्रारम्भ के दिन तो मानो व्यभिचार के दिन होते हैं । उन दिनों उनकी हालत से ऐसा जान पड़ता है, जैसे विवाह जैसी उच्च तथा पवित्र व्यवस्था भी मनुष्य को पशु बनाने के लिए ही गढ़ी गयी हो ।


ऐ नवविवाहित दम्पति ! क्या तुम समझते हो कि यह उचित है ? क्या विवाह के पर्दे में छिपे इस व्यभिचार से तुम्हें शांति, बल तथा स्थायी संतोष मिल सकते हैं ? क्या इस व्यभिचार के लिए छुट्टी पाकर तुममें प्रेम का पवित्र भाव बना रह सकता है ?

देखो, अपने को धोखा मत दो । विषय-वासना में इस प्रकार पड़ जाने से तुम्हारे शरीर और अंतरात्मा, दोनों गिरते हैं । ...और प्रेम !

यह बात गाँठ बाँध लो, प्रेम तो उन लोगों में हो ही नहीं सकता, जो संयमहीन जीवन व्यतीत करते हैं ।


नयी शादी के बाद लोग विषयों में बह जाते हैं परंतु इस अंधेपन में पति-पत्नी का भविष्य, उनका आनंद, बल, प्रेम खतरे में पड़ जाता है । संयमहीन जीवन से कभी प्रेम नहीं उपजता । संयम को तोड़ने पर सदा घृणा उत्पन्न होती है और ज्यों-ज्यों जीवन में संयमहीनता बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों पति-पत्नी का हृदय एक-दूसरे से दूर होने लगता है ।

 

प्रत्येक पुरुष तथा स्त्री को यह बात समझ लेनी चाहिए कि विवाहित होकर विषय-वासना का शिकार बन जाना शरीर, मन तथा अंतरात्मा के लिए वैसा ही घातक है जैसा व्यभिचार । यदि पति अपनी इच्छा को अथवा कल्पित इच्छा को पूर्ण करना अपना वैवाहिक अधिकार समझता है और स्त्री केवल पति से डरकर उसकी इच्छा को पूर्ण करती है तो परिणाम वैसा ही घातक होता है जैसा हस्तमैथुन का ।’