‘वह आनंद जो ईश्वर का आनंद है - ब्रह्मानंद, जिससे बढ़कर दूसरा कोई आनंद नहीं है, उसकी प्राप्ति के लिए आज से शक्तिभर प्रयत्न करेंगे ।’ - यह दृढ़ निश्चय, दृढ़ प्रतिज्ञा ध्यान में सहायक है । इसका अर्थ है कि हमको अब जिंदगीभर ध्यान ही करना है ।
‘हे विषयो ! अब हम तुम्हें हाथ जोड़ते हैं । हे कर्मकांड ! तुम्हें हाथ जोड़ते हैं । हे संसार के संबंधियो ! तुम अपनी-अपनी जगह पर ठीक रहो, अपना काम करो । अब हम तुम्हारी ओर से आँख बंद कर परमानंद की प्राप्ति के लिए पूरी शक्ति से, माने प्राणों की बाजी लगाकर और अपने मन को काबू में करके परमानंद की प्राप्ति के लिए दृढ़ प्रयत्न करने का निश्चय करते हैं ।’ अगर यह निश्चय तुम्हारे जीवन में आ जाय तो देखो क्या ध्यान लगता है ! बारम्बार, बारम्बार-बारम्बार वही चीज आयेगी ध्यान में । महात्मा बुद्ध ने ध्यान लगाते समय कहा था कि इस आसन पर बैठे-बैठे हमारा शरीर सूख जाय -
इहासने शुष्यतु मे शरीरं
त्वगस्थि मांसानिलयं प्रयान्तु ।
ये चमड़ा, हड्डी, मांस खाक में मिल जायें किंतु
अप्राप्यबोधं बहुकल्प दुर्लभं
नैवासनाकायमिदं चलिष्यति ।।
बोध को प्राप्त किये बिना अब हमारा यह शरीर इस आसन से हिलेगा नहीं । तो
संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः ।
(गीता : 12.14)
दृढ़निश्चय होकर ध्यान के लिए बैठो । ऐसे लोगों की परमात्मा बहुत बड़ी सहायता करता है, जो अपनी वासना, अपना भोग, अपना संकल्प छोड़कर परमात्मा की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होते हैं । परमात्मा उनका सारा भार अपने ऊपर ले लेता है और उनको ऊपर उठाता है ।
मन को एकाग्र करके जब हम उसके द्वारा अपनी इन्द्रियों को परमानंद में डुबोना चाहते हैं, जब हमारी इन्द्रियाँ परमानंद की प्राप्ति के लिए अंतर्मुख होने लगती हैं और हम अपनी बुद्धि से परम प्रकाश स्वरूप अनंत ब्रह्म को, चिन्मात्र को अपने हृदय में आविर्भूत (उत्पन्न) करना चाहते हैं, तब अंतर्यामी ईश्वर बिना याचना के ही हमारी मदद करता है, हमारी इन्द्रियों, मन, बुद्धि की मदद करता है ।