Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

भगवदीय अमृत प्रकटाये : भगवन्नाम

गीता (८.६) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : ‘हे कुंतीपुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है, क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है ।’

जहाँ-जहाँ, जिस-जिस व्यक्ति-वस्तु में रुचि होती है, आसक्ति होती है, उसका स्वाभाविक चिंतन होने लगता है और मृत्यु के समय वही चिंतन हमारे अगले जन्मों का निर्धारण करता है । तो क्या अंतकाल को सुखद, सफल बनाने के लिए कोई उपाय नहीं ? भगवान कहते हैं :

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ।

मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ।।

‘इसलिए हे अर्जुन ! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर । इस प्रकार मुझमें अर्पण किये हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा ।’ (गीता : ८.७)

तो अब भगवान का स्मरण कैसे हो ? प्राणिमात्र के परम सुहृद भगवान के स्मरण का एक अच्छा, सुगम साधन है भगवन्नाम-जप । जप से बारम्बार भगवान की स्मृति होती है । जैसे बिगुल बजाने से सैनिक सजग हो जाता है, उसी प्रकार जप से मनरूपी सैनिक भी सावधान हो जाता है ।

नश्वर मानव-देह में आकर जिसने जितना भजन किया, उतना उसने संग्रह किया, उतनी शाश्वत, साथ निभानेवाली पूँजी उसने सँजो ली । इस पूँजी का वर्णन करते हुए संत कबीरजी कहते हैं :

चोर न लेवे घटहु न जावे, कष्ट में आवे काम ।

कहत कबीर इ धन के आगे, पारस को क्या काम ।।

यह भजनरूपी पूँजी ऐसी विलक्षण है कि चोर इसे चुरा नहीं सकते, इसका बँटवारा नहीं होता और कभी घटती भी नहीं । हर प्रकार के कष्ट में, विघ्न-बाधा में यह काम आती है । इस सच्चे धन के आगे पारस भी महत्त्वहीन है । पारस तो नश्वर सांसारिक ऐश्वर्य देकर कुछ समय के लिए दुःख हटाता है लेकिन भगवन्नाम तो सदा-सदा के लिए दुःखों की निवृत्ति कर परमानंद की प्राप्ति करा देता है । गुरु नानकदेवजी कहते हैं :

राम जपत जन पारि परे । जनम जनम के पाप हरे ।

‘राम-नाम जपनेवाले जीव संसार-सागर से पार हो जाते हैं । उनके जन्म-जन्म के पाप धुल जाते हैं ।’

भगवन्नाम-जप कराते-कराते आत्मानंद का रसपान करानेवाले पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘बार-बार भगवन्नाम-जप करने से एक प्रकार का भगवदीय रस, भगवदीय आनंद और भगवदीय अमृत प्रकट होने लगता है । जप से उत्पन्न भगवदीय आभा आपके पाँचों शरीरों को तो शुद्ध रखती ही है, साथ ही तुम्हें अपने परमात्मस्वरूप में जगाती है ।’’

अनमोल मनुष्य-तन को पाकर जो अच्युत, अनंत परमात्मा का स्मरण नहीं करता उसके लिए संत तुलसीदासजी कहते हैं :

राम नाम जपि जीहँ जन भए सुकृत सुखसालि 

तुलसी इहाँ जो आलसी गयो आजु की कालि ।।

‘जीभ से राम-नाम का, भगवन्नाम का जप करके लोग पुण्यात्मा और परम सुखी हो गये परंतु इस नामजप में जो आलस्य करते हैं, उन्हें तो आज या कल नष्ट ही हुआ समझो ।’

अतः पापों के नाश तथा परमानंद की प्राप्ति हेतु हर समय भगवान का स्मरण आवश्यक है । पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘दिन में २४ घंटे हैं आपके पास, उनमें से ६ घंटे सोने में लगा दो, ८ घंटे कमाने में लगा दो तो १४ घंटे हो गये । फिर भी १० घंटे बचते हैं आपके पास । उनमें से अगर ५ घंटे भी आप इधर-उधर, गपशप में लगा देते हैं तो भी ५ घंटे भजन कर सकते हैं... ५ घंटे नहीं तो ४, ४ नहीं तो ३, ३ नहीं तो २, २ नहीं तो कम-से-कम १.५ घंटा तो रोज अभ्यास करो । १.५ घंटा ही सही, उस परमात्मा के लिए लगाओ तो वे दिन दूर नहीं कि जिसकी सत्ता से तुम्हारा शरीर पैदा हुआ है, जिसकी सत्ता से तुम्हारे दिल की धड़कनें चल रही हैं, वह परमात्मा तुम्हारे दिल में प्रकट हो जाय ।’’