Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

सफलता की कुंजी

(पूज्य बापूजी के सत्संग-प्रसाद से)

आपको उद्यमी होना चाहिए ताकि परिस्थितियों के नागपाश में आप कभी न फँसें । आपको उद्यमी होना चाहिए समता के साम्राज्य को पाने में । आपको उद्यमी होना चाहिए मन की गंदी चालों को उखाड़ फेंकने में । आपको उद्यमी होना चाहिए इसी जन्म में जीवन्मुक्ति का विलक्षण आनंद, विलक्षण रस और विलक्षण दिव्य प्रेरणाओं का खजाना पाने के लिए ।

फिर साहस भी होना चाहिए । शेर को देखो, एक हाथी के वजन के आगे कई दर्जन शेर तुल जायें । हाथी शरीर से मोटा है, बल से भी ज्यादा है लेकिन साहस नहीं है तो मारा जाता है, भगाया जाता है । एक शेर दर्जनों हाथियों को भगा देता है और छलाँग मारकर किसी एक हाथी पर चढ़ जाता है, उसका मस्तक फाड़ देता है, चीर देता है क्योंकि शेर में साहस है ।

हाथी में बचने का उद्यम तो है पर साहस और धैर्य नहीं है । अगर हाथी साहसी हो तो एक शेर तो क्या दर्जनों शेरों को अपनी सूँड़ से मार भगाये, पकड़-पकड़ के अपने पैरों तले शेरों की चटनी बनाता जाय, ऐसी योग्यताएँ उसमें हैं लेकिन साहस और धैर्य के अभाव में हाथी भयभीत हो जाता है और शेर उस पर हावी हो जाता है ।

आपके जीवन में तो ऐसी कमियाँ नहीं हैं ?

‘हैं ।’ नहीं तो आपके पड़ोसी, आपके राजनेता, पुलिस विभागवाले या और कोई कर्मचारी नाम लिखने की धौंस देकर, कागजात चेक करने की धौंस देकर आपकी जेब खाली कर लेते क्या ? काहे को करते हैं ? ‘फलाने कागजात नहीं हैं, फलाने नहीं हैं’ - ऐसा कहकर कइयों को डरा देते हैं ।

दिल्ली की घटित घटना है । एक कारवाले को रोका कि आपने कार गलत जगह पार्क की है । इतने में दलाल आ गये, बोले : ‘‘अब दे दो न हजार-पाँच सौ रुपये, नहीं तो न्यायालय में दो-चार हजार रुपये का दंड भरना पड़ेगा, चक्कर काटोगे ।’’

वह बोला : ‘‘नहीं, इनकी आदत बिगड़ेगी और फिर मेरे दूसरे भाइयों को सतायेंगे ।’’

उसने नहीं दिये पैसे । मामला न्यायालय में गया । न्यायाधीश ने कहा : ‘‘आपने कार-पार्किंग गलत जगह पर की थी, अतः सौ रुपये दंड ।’’

उसको लगा कि हमने बचने का उद्यम किया, डरे नहीं, साहसी बने तो देखो, सौ रुपये में ही काम हो गया !

दो-पाँच हजार रुपये देकर लोग घूसखोरी की परम्परा बढ़ाते हैं और देशवासियों की मुसीबत बढ़ानेवाले होते हैं । संकल्प करें कि ‘अब हम रिश्वत लेंगे नहीं और रिश्वत देंगे नहीं ।’ समाज की सज्जनता है इसीलिए भ्रष्टाचार करनेवालों ने, महँगाई करनेवालों ने नोच-नोचकर समाज को कहीं का नहीं रखा । प्रजा को उद्यमी होना पड़ेगा, साहसी होना पड़ेगा । उद्यम और साहस पर्याप्त नहीं हैं, धैर्यवान भी होना पड़ेगा । जब जैसी परिस्थिति आये वैसा निर्णय लेना चाहिए । उद्यम, साहस आये और जहाँ-तहाँ चल पड़े... नहीं, धैर्य रखो । ये तीन और बुद्धि, शक्ति व पराक्रम - कुल छः चीजें अपने में सँजोकर किसी भी क्षेत्र में आगे ब‹ढोगे तो आप न चाहो तो भी सफलता आपके कदम चूमेगी । आपका लक्ष्य होना चाहिए ‘बहुजनहिताय’ । अपनी वाहवाही के लिए नहीं, अपने स्वार्थ के लिए नहीं । समाजरूपी बगीचे को सीचेंगे तो परमात्मा प्रसन्न होंगे ।

बहनें भी महिला मंडल बना सकती हैं । जहाँ कहीं जुल्म हो और भाइयों की पहुँच न हो तो बहनें पहुँच जायें । उन अधिकारियों को, उन शोषकों को चूड़ियाँ भेंट कर दें और मौनपूर्वक जप करके वहाँ धरना दें तो वे लोग तौबा पुकार लेंगे ।

‘पेट्रोल के भाव बढ़ गये हैं, फलाने भाव बढ़ गये हैं, इतना जुल्म ! कमरतोड़ मँहगाई !’ - कोई हल्ला-गुल्ला नहीं करना, किसीके लिए बुरा नारा नहीं पुकारना है । जो जहाँ पर है, वहीं नियत समय पर बस केवल एक घंटा सभी लोग मौन रख लें । अपना कामकाज तो करें लेकिन यह संकल्प भी करें कि ‘विदेशों में इतने पैसे जा रहे हैं, करोड़ों-अरबों रुपये जमा हैं नोचनेवालों के, फिर भी हमको नोच रहे हैं । हे भगवान ! भारतवासियों पर कृपा करो ।’ सबके हृदय में दृढ़ संकल्प हो जाय तो शोषकों की नींद हराम हो जायेगी ।

हिरण्यकशिपु की तपस्या का इतना भारी प्रताप था कि उसने वायु देवता को आदेश दे दिया कि ‘प्रह्लाद को जब पसीना आये तो तुम उसी समय चलना । मेरे पुत्र को पंखा झलना न पड़े, ध्यान रखना ।’ ऐसे प्रभावशाली हिरण्यकशिपु का राज्य नहीं रहा, शरीर नहीं रहा तो तुम चार दिन की qजदगी के लिए बेईमानी करके धन इकट्ठा करोगे, रिश्वत लेकर, देशवासियों को चूसकर परदेश में धन रखोगे तो कब तक रहेगा ?