Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

परिपक्व बनायेगी नियम-निष्ठा

(पूज्य बापूजी का सत्संग-प्रसाद)

नियम-निष्ठा आदमी को बहुत ऊँचा उठाती है । जो नियम-निष्ठा के लिए बोलता है : ‘अच्छा, देखेंगे, हो सका तो करूँगा, कोशिश करूँगा, भगवान की कृपा होगी...’ ऐसा लोग जब बोलते हैं तो मुझे बड़ा दुःख होता है, आश्चर्य होता है कि यह कोई बात है ! कोई अच्छी बात आयी तो ‘फिर देखेंगे... सोचूँगा... ।’ अच्छाई को पाने के लिए तो नियम-निष्ठा लेनी पड़ती है, व्रत लेना पड़ता है ।

व्रतेन दीक्षामाप्नोति...

कुछ ऐसे संत लोग होते हैं भाई... सुबह उठे, नहाये-धोये, ध्यान-भजन किया लेकिन जब तक नियम नहीं किया तब तक चाहे कितनी भी भूख लगे तो भी दूध तक नहीं पियेंगे । नहीं पीना है तो नहीं पीना है, फिर चाहे दस बज गये, ग्यारह बज गये, बारह बज गये, एक बज गया, दो बज गये तो क्या है ! अपना नियम पूरा करना है तो करना है ।

बिना नियम के खा लिया, बिना नियम के पी लिया तो जीवन में क्या बरकत आयेगी ! तो नियम-निष्ठा से तप में सफलता आती है । कोई ऊँचे पद पर हैं, हट्टेकट्टे हैं तो ऊँची गद्दी पर बैठने से ऐसे नहीं हुए अपितु उन्होंने जो ज्ञानार्जन किया, भोजन किया वह पचाया है, तभी ऐसे दिख रहे हैं । ऐसे ही जिनकी आध्यात्मिक ऊँचाई है उनकी वह ऊँचाई केवल सुन के, बोल के नहीं हुई है अपितु उन्होंने अपना पचाया है, अपने को ढाला है । मन के कहने में पतंगे की नार्इं, तितली की नार्इं इधर-उधर नहीं गये, वे ही परिपक्व हुए हैं ।

जब बाहर की विद्या के लिए भी तपस्या होती है, तब विद्या चमकती है तो यह तो ब्रह्मविद्या है । इसके लिए सात्त्विक तप चाहिए, नियम-निष्ठा चाहिए । कभी किया - कभी नहीं किया, कभी चल दिया... जैसा मन को अच्छा लगे वैसा करता रहेगा तो पतन हो के  ही रहेगा । जैसा मन में आया वैसा करेंगे तो मन कमजोर हो जायेगा, फिर भूत-प्रेतों का मन भी आपको प्रभावित कर देगा । ऐसा क्यों कमजोर बनना कि किसीका भी मन अपने को प्रभावित कर दे !