फलों में शरीर के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक जीवनसत्त्व (विटामिन्स) व खनिज द्रव्यों के साथ रोगनिवारक औषधि-तत्त्व भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं ।
आँवला
यह व्याधि व वार्धक्य को दूर रखनेवाला, रक्त-वीर्य व नेत्रज्योतिवर्धक तथा त्रिदोषशामक श्रेष्ठ रसायन है ।
निम्नलिखित सभी प्रयोगों में आँवला-रस की मात्रा : १५ से २० मि.ली. (बालक : ५ से १० मि.ली.)
इन प्रयोगों में कलमी आँवलों की अपेक्षा देशी आँवलों का उपयोग ज्यादा लाभदायी है ।
(१) धातुपुष्टिकर योग : आँवले के रस में १०-१५ ग्राम देशी घी व २ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण मिलाकर लेने से शुक्रधातु पुष्ट होती है ।
(२) ओजस्वी योग : आँवले के रस में १५ ग्राम गाय का घी व १० ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से ओज, तेज, बुद्धि व नेत्रज्योति की वृद्धि होती है । शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है ।
(३) हृद्ययोग : आँवले के रस में १० ग्राम पुदीने का, ५-५ ग्राम अदरक व लहसुन का रस मिलाकर लेना हृदयरोगों में बहुत लाभकारी है । इससे कोलेस्टड्ढॉल भी नियंत्रित होता है ।
(४) रक्तपित्तशामक योग : आँवले के रस में पेठे का रस समभाग मिलाकर सुबह-शाम पीने से नाक, मुँह, योनि, गुदा आदि के द्वारा होनेवाला रक्तस्राव रुक जाता है ।
(५) दाहशामक योग : आँवले व हरे धनिये के समभाग रस में मिश्री मिलाकर दिन में १ से २ बार लेने से दाह व जलन शांत हो जाती है ।
(६) मिश्रीयुक्त आँवला रस उत्तम पित्तशामक तथा श्वेतप्रदर में लाभदायी है ।
(७) आँवला व ताजी हल्दी के रस का सम्मिश्रण स्वप्नदोष, मधुमेह व त्वचा-विकारों में हितकर है ।
(८) आँवले के रस में २ ग्राम जीरा चूर्ण व मिश्री अम्लपित्त (एसिडिटी) नाशक है ।