Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

गाय का उपकार और मनुष्य का कर्तव्य

30 अक्टूबर को गोपाष्टमी का पर्व है । इस पर्व की महत्ता व उपयोगिता के बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है :

गोपाष्टमी को गायों का आदर-सत्कार करते हुए अपने शरीर में गो-तत्त्व भरने की प्रेरणा देते हैं श्रीकृष्ण । अष्टधा प्रकृति का प्रतीक है गोपाष्टमी । अष्टधा प्रकृति के शरीर को स्वस्थ रखने में गाय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । गाय के शरीर में जो सूर्यकेतु नाड़ी है वह दूसरे प्राणियों में नहीं है । सूर्य की हजार-हजार प्रकार की किरणें हैं । उनमें तीन मुख्य किरणें हैं : (1) जीवनीशक्ति देनेवाली (आयु) (2) दाहक शक्ति देनेवाली (ज्योति), सूर्य की तपन में दाहकता का अनुभव जिसके कारण होता है (3) ‘गो’शक्ति देनेवाली गोकिरण । गोकिरण को अवशोषित करने का सामर्थ्य सूर्यकेतु नाड़ी में होता है और वह नाड़ी भारतीय नस्ल की गाय के शरीर में पायी गयी है । गाय की रीढ़ की हड्डी के साथ जो बड़ी नाड़ी जाती है वह सूर्यकेतु नाड़ी है । इसी कारण गाय के दूध, दही, घी, गोबर, झरण में सुवर्णक्षार पाये गये यह वैज्ञानिकों ने खोजा । 

स्वास्थ्य प्रदायक गौ माता

पूर्व के समय में जो भी निरोग रहना चाहते थे अथवा शत्रु राजाओं से अप्रभावित होकर विशेष प्रभावशाली होना चाहते थे तो वे लोग यज्ञ करते थे और यज्ञ में पंचगव्य का उपयोग होता था । लोग पंचगव्य का पान करते थे । यह पंचगव्य गाय के दूध, दही, घी, झरण और गोबर से बनता है । हड्डियों तक के रोग तथा जो रोग भविष्य में होनेवाले हैं उन रोगों के कणों को पंचगव्य निकालकर फेंक देता है । इसीलिए पहले के जमाने में लोग दीर्घजीवी होते थे, निरोग होते थे, डॉक्टरों के गुलाम नहीं बनते थे, अस्पताल में बुढ़ापा नहीं बिताते थे और जानलेवा बीमारियों में सड़ते-पचते नहीं थे । पंचगव्य का इतना भारी प्रभाव है । तो यह पंचगव्य जिस गाय के दूध, दही आदि से बनता है वह अष्टधा प्रकृति के शरीर की सुरक्षा करती है ।

भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।

अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ।।

पाँच भूत और मन, बुद्धि व अहं - यह अष्टधा प्रकृति है । इसको शुद्ध करने के लिए गोपाष्टमी को गो-पूजन किया गया ।

गायों का पूजन अष्टमी के दिन किया, ग्यारस, बारस, प्रतिपदा या चतुर्थी को क्यों नहीं ? अष्टधा प्रकृति के शरीर को स्वस्थ रखनेवाली गौ से प्राप्त होनेवाली जो भी चीजें (पंचगव्य) हैं वे हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं और गाय गोकिरण अवशोषित करती है तो उसका फायदा भी हमें गाय के माध्यम से मिलता है । इसलिए गायों का पूजन अष्टमी के दिन किया जाता है । गाय मनुष्य-जाति के लिए देव है ।

तो और दिनों में नहीं कर सकें तो गोपाष्टमी के दिन अष्टधा प्रकृति के शरीर की सुरक्षा करनेवाली गौ माता का आदर-सत्कार करें ताकि प्रजा उसका फायदा उठाये ऐसी व्यवस्था हमारे धर्म में की गयी । रघु राजा, दिलीप राजा भी गायों की सेवा करते थे ।

पूतना अपने स्तनों पर कालकूट जहर लगा के आयी । भगवान श्रीकृष्ण पूतना के विषयुक्त दुग्ध का पान करते समय उसके प्राणों को भी चूसने लगे । इतना दर्द हुआ कि वह अपने को छुपा न सकी और राक्षसी रूप में प्रकट हो गयी । वह श्रीकृष्ण को ले भागी आकाश में । श्रीकृष्ण दूध के साथ उसके प्राण भी पी गये । जब वह गिरी तो 6 कोस (19.2 किलोमीटर) जितनी विशाल हो गयी थी । जब पूतना गिरी, मरी तो श्रीकृष्ण उसकी छाती पर खेल रहे थे । इस राक्षसी के प्रभाव से श्रीकृष्ण को मुक्त करने के लिए यशोदा व रोहिणी के साथ उस जमाने की समझदार गोपियों ने गाय की पूँछ से श्रीकृष्ण का उतारा किया ।

गाय के ऋण से उऋण होने का पर्व

गायों के खुर की मिट्टी जहाँ पड़ती है वहाँ भूत-प्रेत का प्रभाव नहीं होता । आप गायों की पूजा बाहर से न भी करो तब भी कम-से-कम देशी गाय के दूध, दही, घी का आदर करो ताकि पूजा का फल तो ले सको । गाय के गोबर, झरण, उसके अस्तित्व से भी मानव का मंगल होता है । इसलिए मंगल करनेवाले प्राणी का ऋण हम पर न चढ़े, हम गद्दार, बेवफा न हों, हम लापरवाह न हों । हम बोझे से दबकर फिर उनके घर के पशु न बनें इसलिए हमको गोपाष्टमी सिखाती है कि ‘आप उऋण होने के लिए गाय का पूजन कर लो, थोड़ा चारा दे दो, तिलक कर दो ।...’ 

कुत्ता भी जिसके घर का टुकड़ा खाता है उससे वफादार रहता है और पागल हो जाने पर वह घर छोड़ देता है । तो मनुष्य को कुत्ते से नीचे नहीं जाना चाहिए । गाय से इतना सब मिलता है तो गाय का पूजन करिये, गाय का आदर करिये । अभी तो स्वार्थ इतना है कि गायें बेचारी खाने-पीने के लिए कचरापेटी में मुँह डालती हैं, इधर-उधर भटकती रहती हैं, किसीको कुछ पड़ी नहीं तो लोगों का आरोग्य भी ऐसा ही है, घर में सुख-शांति भी ऐसी ही है । 

बिल्ली, कुत्ते और बकरी के पैरों की धूल आने से घर अलक्ष्मीवाला हो जाता है और गाय के खुर की मिट्टी घर के दोषों व उपद्रव को दूर करती है । गाय की पूँछ का उतारा भूत-प्रेत की बाधा, नजर-वजर और हलकी आभा को हटा देता है । इसका मतलब यह हुआ कि गाय के शरीर में जो सूर्यकेतु नाड़ी है उसकी आभा इतनी प्रभावशाली है कि हलकी आभा उसके सामने टिक नहीं सकती । 

आपने किसीसे भलाई की और वह बदले में गद्दारी करता है तो उसका खानदान लम्बा नहीं चल सकता है । आपसे किसीने भलाई की तो आप उस भलाई का बदला भलाई से न कर सको तो कम-से-कम गद्दारी तो किसी भी कीमत पर नहीं करनी चाहिए । अपने को बेचकर भी भलाई करनेवाले का ऋण उतार देना चाहिए । गाय कितनी भलाई करती है, गाय का कितना उपकार है ! तो उससे उऋण होने के लिए गाय के पूजन की परम्परा गोपाष्टमी को है ।   

REF: ISSUE394_OCTOBER_2025