लाभ : (1) इसके अभ्यास से अजीर्ण और पित्त की बीमारी नहीं होती ।
(2) यह तापमान-नियमन से संबंधित मस्तिष्क केन्द्रों को प्रभावित करता है । शारीरिक गर्मी को कम करने के लिए इसका अभ्यास लाभप्रद है ।
(3) यह उच्च रक्तचाप (High blood pressure) एवं पेट की अम्लीयता को कम करने में सहायक है ।
(4) यह मानसिक एवं भावनात्मक उत्तेजनाओं को शांत करता है तथा पूरे शरीर में प्राण के प्रवाह को निर्बाध बनाता है ।
(5) इससे मांसपेशियों में शिथिलता आती है तथा मानसिक शांति प्राप्त होती है ।
(6) इससे भूख-प्यास पर नियंत्रण प्राप्त होता है ।
(7) गर्मी के दिनों में पसीना छूटता है या अधिक प्यास लगती है अथवा शरीर में बहुत गर्मी और बेचैनी का अनुभव होता है तो इनका निराकरण इस प्राणायाम से सम्भव है ।
(8) श्रम से उत्पन्न थकान अधिक देर तक नहीं रहती ।
विधि : पद्मासन या सुखासन में बैठकर दोनों हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें । आँखों को कोमलता से बंद करें । जिह्वा को बाहर निकालें और नली के समान मोड़ दें । अब इसमें से ऐसे श्वास अंदर लें, जैसे आप किसी नली से वायु पी रहे हों । श्वास मुड़ी हुई गीली जिह्वा में से गुजरकर आर्द्र व ठंडा हो जाता है । पेट को वायु से पूर्णतया भर लेने के बाद जिह्वा को सामान्य स्थिति में लाकर मुँह बंद कर लें । ठोड़ी को कंठकूप परे पर दबाकर जालंधर बंध करें, योनि का संकोचन करके मूलबंध करें । श्वास को 5 से 10 सेकंड तक रोके रखें । बाद में दोनों नथुनों से धीरे-धीरे श्वास छोड़ दें । यह एक शीतली प्राणायाम हुआ । इस प्रकार तीन प्राणायाम करें । धीरे-धीरे इसे 5-7 बार भी कर सकते हैं ।
सावधानियाँ : शीतली प्राणायाम सर्दियों में नहीं करना चाहिए । निम्न रक्तचाप (Low blood pressure) में तथा दमा, खाँसी आदि कफजन्य विकारों में यह प्राणायाम निषिद्ध है ।
इसे अधिक न करें, अन्यथा मंदाग्नि होगी । बिनजरूरी करने से भूख कम हो जायेगी । पित्त और ताप मिटाने के लिए भी 5-7 बार ही करें ।
* Ref: Rishi Prasad Issue281 - May 2016