Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

मन को शांत करने के उपाय

किसी भी प्रकार की व्याधि होने पर उस व्याधि की औषधि लेने के साथ-साथ मन को भी शांत करने के प्रयास करने चाहिए । वर्तमान समय में बहुत सारे रोगों का कारण अशांत मन है । स्वप्नदोष, श्वेतप्रदर, अनियमित मासिक धर्म, अनियंत्रित रक्तदाब (uncontrolled B.P.), मधुमेह (diabetes), दमा, जठर में अल्सर, मंदाग्नि, अम्लपित्त (hyper-acidity), अतिसार, अवसाद (depression), मिर्गी, उन्माद (पागलपन) और स्मरणशक्ति का ह्रास जैसे अनेक रोगों का कारण मन की अशांति है ।

चित्त (मन) में संकल्प-विकल्प बढ़ते हैं तो चित्त अशांत रहता है, जिससे प्राणों का लय अच्छा नहीं रहता, तालबद्ध नहीं रहता । अनेक कार्यों में हमारी असफलता का यही कारण है ।


हमारे देश के ब्रह्मवेत्ता, जीवन्मुक्त संतों ने मन को शांत करने के विभिन्न उपाय बतलाये हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख, चुनिंदा उपाय इस प्रकार हैं :

(1) उचित आहार : मन को वश करने के लिए, शांत करने के लिए सर्वप्रथम आहार पर नियंत्रण होना अत्यावश्यक है । जैसा अन्न खाते हैं, हमारी मानसिकता का निर्माण भी वैसा ही होता है । इसलिए सात्त्विक, शुद्ध आहार का सेवन करना अनिवार्य है । अधिक भोजन करने से अपचन की स्थिति निर्मित होती है, जिससे नाड़ियों में कच्चा रस ‘आम’ बहता है, जो हमारे मन के संकल्प-विकल्पों में वृद्धि करता है । फलतः मन की अशांति में वृद्धि होती है । अतएव भूख से कम आहार लें । भोजन समय पर करें । रात को जितना हो सके, अल्पाहार लें । तला हुआ, पचने में भारी व वायुकारक आहार के सेवन से सदैव बचना चाहिए । साधक को चाहिए कि वह कब्ज का निवारण करके सदा ही पेट साफ रखे ।

(2) अभ्यास, वैराग्य व ब्रह्मचर्य : भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है :

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।।

अभ्यास और वैराग्य से मन शांत होता है । वैराग्य दृढ़ बनाने के लिए इन्द्रियों का अनावश्यक उपयोग न करें, अनावश्यक दर्शन-श्रवण से बचें । समाचार पत्रों की व्यर्थ बातों व टी.वी., रेडियो या अन्य बातों में मन न लगायें । ब्रह्मचर्य का दृढ़ता से अधिकाधिक पालन करें ।

(3) आसन-प्राणायाम : इन्द्रियों का स्वामी मन है और मन का स्वामी प्राण है । प्राण जितने अधिक सूक्ष्म होंगे, मन उतना ही अधिक शांत रहेगा । प्राण सूक्ष्म बनाने के लिए नियमित आसन-प्राणायाम करें । पद्मासन, सिद्धासन, पादपश्चिमोत्तानासन, सर्वांगासन, मयूरासन, ताड़ासन, वज्रासन एवं अन्यान्य आसनों का नियमित अभ्यास स्वास्थ्य और एकाग्रता के लिए हितकारी है, सहायक है । आसन-प्राणायाम के 25-30 मिनट बाद ही किसी आहार अथवा पेय पदार्थ का सेवन करें । प्राणायाम व आसन का अभ्यास खाली पेट ही करें अथवा भोजन के 3-4 घंटे के बाद ही करें । प्राणायाम का अभ्यास आरम्भ में किन्हीं अनुभवनिष्ठ योगी महापुरुष के मार्गदर्शन में करना चाहिए ।

(विभिन्न आसनों की सचित्र जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध पुस्तक ‘योगासन’ । - संकलक)

 

(4) श्वासोच्छ्वास की गिनती : सुखासन, पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर श्वासोच्छ्वास की गिनती करें । इसमें न तो श्वास गहरा लेना है और न ही रोकना है । केवल जो श्वास चल रहा है, उसे गिनना है । श्वास की गणना कुछ ऐसे करें :

श्वास अंदर जाय तो ‘राम...’, बाहर निकले तो ‘1’... श्वास अंदर जाय तो ‘आनंद’... बाहर निकले तो ‘2’... श्वास अंदर जाय तो ‘शांति’... बाहर निकले तो ‘3’... इस प्रकार की गणना जितनी शांति, सतर्कता से करेंगे, हिले बिना करेंगे, उतनी एकाग्रता होगी, उतना सुख-शांति, प्रसन्नता और आरोग्य का लाभ होगा ।

(5) त्राटक : मन को वश में करने का अगला उपाय है त्राटक । अपने इष्टदेव, स्वस्तिक, ॐकार अथवा सद्गुरु की तस्वीर को एकटक देखने का अभ्यास बढ़ायें । फिर आँखें बंद कर उसी चित्र का भ्रूमध्य में अथवा कंठ में ध्यान करें ।

(6) जप-अनुष्ठान : मंत्रजप का अधिक अभ्यास करें । वर्ष में 1-2 जपानुष्ठान करें तथा पवित्र आश्रम, पवित्र स्थान में थोड़े दिन निवास करें ।

(7) क्षमायाचना करना एवं शांत होना : मन की शांति अनेक जन्मों के पुण्यों का फल है अतएव जाने-अनजाने में हुए अपराधों के बदले में सद्गुरु या भगवान की तस्वीर अपने पास रखकर अथवा ऐसे ही मन-ही-मन प्रायश्चितपूर्वक उनसे क्षमा माँगना एवं शांत हो जाना भी एक चिकित्सा है ।

(8) आत्मचिंतन : आत्मचिंतन करते हुए देहाध्यास को मिटाते रहें । जैसे कि ‘मैं आत्मस्वरूप हूँ... तंदुरुस्त हूँ... मुझे कोई रोग नहीं है । बीमार तो शरीर है । काम, क्रोध जैसे विकार तो मन में हैं । मैं शरीर नहीं, मन नहीं, निर्विकारी आत्मा हूँ । हरि ॐ... आनंद... आनंद... ।’

     (9) प्रसन्नता : हर रोज प्रसन्न रहने का अभ्यास करें । किसी बंद कमरे में जोर से हँसने (देव-मानव हास्य प्रयोग) और सीटी बजाने का अभ्यास करें ।

 

इन 9 बातों का जो मनुष्य दृढ़तापूर्वक पालन करता है, वह निश्चय ही अपने मन को वश में कर लेता है । आप भी अपने मन को सुखमय, रसमय, अनासक्त, एकाग्र करते हुए अपने सदा रहनेवाले आत्मस्वरूप में जग जाओ ।