Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

दोष-दर्शन नहीं देव-दर्शन

दोष-दर्शन नहीं देव-दर्शन 

- पूज्य बापूजी

एक माई ने अपने बेटे की निंदा की एवं बहन ने अपने भाई की निंदा की उसकी धर्मपत्नी के सामने, जो अभी-अभी शादी करके आयी थी । बहन बोली : ‘‘मेरे भाई का नाम तो तेजबहादुर है । बड़ा तेज है, बात-बात में अड़ जाता है, माँ से पूछो...’’

माँ ने कहा : ‘‘इसको पता चलेगा, अभी तो शादी हुए दूसरा दिन हुआ है । अभी तेरे से पंगा होगा, तेरी खबर लेगा बहुरानी ! मेरा बेटा है, मेरा जाया हुआ है, मैं जानती हूँ । अभी तो २-३ दिन मिठाइयों और गहनों का मजा ले ले, फिर देख कैसा है तेजबहादुर ! कैसा तेज है !’’

 

बहुरानी थोड़ी गम्भीर दिखी ।

दोनों ने बोला : ‘‘तू कुछ बोलती नहीं ! इतनी देर से हम तेरे पति की निंदा कर रहे हैं ।’’

बहू तो सत्संगी थी, वह बोली : ‘‘मैं क्या बोलूँ ? आप तो उनकी माताजी हो, मैं आपको नहीं बोल सकती और आप उनकी बहन हो...’’

‘‘तो तू क्यों नहीं पूछती है कि क्या वे सचमुच में ऐसे हैं ? तेज स्वभाववाले हैं ?’’

‘‘माताजी ! माफ करना । आप तो अभी वृद्ध हो, भगवान के धाम में जाओगी । और ननदजी ! आप शादी में आयी हो, अपनी ससुराल जाओगी । मेरे को तोे इनके साथ ही जिंदगी गुजारनी है । मैं इनमें दोष देखकर अपना जीवन जहरी काहे को बनाऊँ ? कैसे भी हैं, ये तो मेरे भर्ता हैं, पतिदेव हैं । देखा जायेगा... हरि ॐ... हरि ॐ... निंदा सुनकर, मान के मैं काहे को सिकुड़ूँ, काहे को परेशान हो जाऊँ !’’

कैसी ऊँची समझ रही सत्संगी बहुरानी की ! सत्संग जीवन जीने की कला सिखा देता है । दुःख की दलदल में भी समता और ज्ञान के कमल खिला देता है ।

प्रेम और विश्वास कैसे बढ़े ?

प्रेम का बाप है विश्वास और विश्वास का बाप है सच्चाई । पति-पत्नी को एक-दूसरे से सच्चाई से पेश आना चाहिए । पत्नी एक बार झूठ बोलेगी, दो बार, पाँच बार, दस बार तो आखिर पति भी तो रोटी खाता है, उसे पता चल जायेगा । पति भी दस बार झूठ बोलेगा तो आखिर पत्नी भी तो रोटी खाती है, पति की भी पोल खुल जायेगी । इसलिए एक-दूसरे को झाँसा देकर पटा के नहीं जीना चाहिए । सच्चाई से बोल दो कि ‘देखो, तुमको सुनकर अच्छा तो नहीं लगेगा लेकिन मेरे से ऐसा हो गया... मैं सत्य बोलता हूँ ।’ घुमा-फिराकर आप जितना दूसरों के सामने अच्छा दिखने का दिखावा करोगे, उतनी ही आपकी उस ‘अच्छाई’ की पोल खुल जायेगी । लेकिन सच्चाई से जितने तुम अच्छे दिखोगे, उतना ही तुम्हारे प्रति दूसरों में विश्वास बढ़ेगा ।

मैं आपको सच बताता हूँ कि और लोग तो चन्द्रमा को अघ्र्य देते हैं लेकिन मेरे बेटे की माँ व्रत खोलती है तो मुझे अघ्र्य देकर फिर खाना खाती है, विश्वास की बात है ।

बेटा पिता पर विश्वास करे कि ‘मेरे पिताजी जो करते हैं, मेरी भलाई के लिए करते हैं ।’ आप गृहस्थ-जीवन जियो तो बेटे का सद्भाव सम्पादन करो । बेटा बाप के प्रति सद्भाव रखे, पति पत्नी के प्रति रखे । फिर चाहे रूखी रोटी हो चाहे चुपड़ी हो, चाहे खूब यश हो चाहे अपयश की आँधी चले, कोई फर्क नहीं पड़ता । स‘च्छध्वं सं वदध्वं... कंधे-से-कंधा मिलाकर सजातीय विचार रख के जीना चाहिए ।

गृहस्थ-जीवन का यही सार है ।

एक-दूसरे के प्रति शक विदेश में बहुत है । पत्नी का बैंक-खाता अलग, पति का खाता अलग, पति पत्नी से छुपाये, पत्नी पति से छुपाये, उसके बॉय फ्रेंड अलग, उसकी गर्ल फ्रेंड अलग... बड़ा जहरी जीवन है । लेकिन यह गंदगी हमारे भारत में न बढ़े इसलिए मैं इस उम्र में भी खूब दौड़-धूप कर रहा हूँ । मेरा उद्देश्य यही है कि भारतीय संस्कृति की गरिमा का फायदा भारतवासियों को तो मिले, साथ ही विश्व के लोगों को भी मिले । और देर-सवेर भारत विश्वगुरु होगा, मेरे इस संकल्प को कोई तोड़ नहीं सकता, रोक नहीं सकता ।