Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

प्रार्थना की अथाह शक्ति

सच्चे हृदय की पुकार को वह हृदयस्थ परमेश्वर जरूर सुनता है, फिर पुकार चाहे किसी मानव ने की हो या किसी प्राणी की हो । गज की पुकार को सुनकर स्वयं प्रभु ही ग्राह से उसकी रक्षा करने के लिए वैकुंठ से दौड़ पड़े थे, यह तो सभी जानते हैं ।
एक कथा आती है, एक पपीहा पेड़ पर बैठा था । वहाँ उसे बैठा देखकर एक शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया । आकाश से एक बाज पक्षी भी उस पपीहे को ताक रहा था । अब पपीहा क्या करता ?
कोई और चारा न देखकर पपीहे ने प्रभु से प्रार्थना की : ‘हे प्रभु ! तू सर्वसमर्थ है । इधर शिकारी है, उधर बाज है । अब तेरे सिवा मेरा कोई नहीं । हे प्रभु ! तू ही रक्षा कर...’
जब अपने बल का अभिमान छूट जाता है और भगवान की समर्थता हृदय में सुदृढ़ होती है तो की हुई प्रार्थना भगवान स्वीकार कर लेते हैं । एक ही प्रार्थना 9 बार की जाय तो उनमें से एक बार तो जरूर फल जाती है । प्रार्थना में शब्द कैसे हैं उसका महत्त्व नहीं है, आर्तभाव से प्रार्थना करके शांत हो जायें ।
पपीहा प्रार्थना में तल्लीन हो गया । वृक्ष के पास बिल में से एक साँप निकला । उसने शिकारी को दंश मारा । शिकारी का निशाना हिल गया । हाथ में से बाण छूटा और आकाश में जो बाज मँडरा रहा था, उसे जाकर लगा । शिकारी के बाण से बाज मर गया और साँप के काटने से शिकारी मर गया । पपीहा बच गया ।
इस सृष्टि का कोई मालिक नहीं है - ऐसी बात नहीं है । यह सृष्टि समर्थ संचालक की सत्ता से चलती है ।
1970 की एक घटना अमेरिका के विज्ञान-जगत में चिरस्मरणीय रहेगी ।
अमेरिका ने 11 अप्रैल, 1970 को अपोलो-13 नामक अंतरिक्षयान चन्द्रमा पर भेजा । 2 दिन बाद पृथ्वी से 2 लाख मील की दूरी पर, चन्द्रमा पर पहुँचने के पहले ही उसके प्रथम यूनिट (कमांड मोड्यूल) की ऑक्सीजन की टंकी में अचानक विस्फोट हुआ, जिससे उस यूनिट में ऑक्सीजन खत्म हो गयी और विद्युत आपूर्ति बंद हो गयी ।
उस यूनिट के तीनों अंतरिक्षयात्री कमांड मोड्यूल यूनिट की सब प्रणालियाँ बंद कर एक्वेरियस (ल्युनार मोड्यूल) यूनिट में चले गये । परंतु पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रविष्ट होकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौटने में उसका सफल उपयोग कर पाने की सम्भावनाएँ कम थीं । साथ ही ल्युनार मोड्यूल यूनिट दो व्यक्तियों को दो दिन तक सँभालने की क्षमता के हिसाब से बनाया गया था । परंतु यहाँ उसे 4 दिन तक 3 लोगों को सँभालना था । और इतने लम्बे समय तक का भोजन-पानी का संग्रह भी नहीं बचा था । इसके अतिरिक्त इस यूनिट के अंदर बर्फ की तरह जमा दे ऐसा ठंडा वातावरण एवं अत्यधिक कार्बन डाइऑक्साइड थी । जीवन बचने की सम्भावनाएँ बहुत कम थीं ।
इस विकट परिस्थिति में सब निःसहाय हो गये । कोई मानवीय ताकत अंतरिक्षयात्रियों को सहायता पहुँचा सके यह सम्भव नहीं था ।
देशवासियों ने प्रार्थना की । अंतरिक्षयात्रियों ने ईश्वर के भरोसे पर एक साहस किया । चन्द्र पर अवरोहण करने के लिए ल्युनार मोड्यूल यूनिट के जिस इंजन का उपयोग करना था, उसकी गति एवं दिशा बदलकर अपोलो-13 को पृथ्वी की ओर मोड़ दिया । और आश्चर्य ! तमाम जीवनघातक जोखिमों से पार होकर अंतरिक्षयान ने सही-सलामत 17 अप्रैल 1970   के दिन प्रशांत महासागर में सफल अवरोहण किया ।
उन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने बाद में सभी देशवासियों को समाचार-पत्र के द्वारा कहा : ‘ऐसी कठिन परिस्थिति में सुरक्षित लौटने के लिए आप सभीने हमारे लिए प्रार्थना की, इसके लिए आप सभीको हृदयपूर्वक धन्यवाद है ।’
वह परमात्मा कैसा समर्थ है ! वह कर्तुं अकर्तुं अन्यथा कर्तुं समर्थः... है । असम्भव भी उसके लिए सम्भव है । सृष्टि में चाहे कितनी भी उथल-पुथल मच जाय लेकिन जब वह अदृश्य सत्ता किसीकी रक्षा करना चाहती है तो वातावरण में कैसी भी व्यवस्था करके उसकी रक्षा कर देती है । ऐसे तो कई उदाहरण हैं ।
कितना बल है प्रार्थना में ! कितना बल है उस अदृश्य सत्ता में ! अदृश्य सत्ता कहो, अव्यक्त परमात्मा कहो, एक ही बात है लेकिन वह है जरूर । उसी अव्यक्त, अदृश्य सत्ता का साक्षात्कार करना यही मानव-जीवन का अंतिम लक्ष्य है ।