Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

चार स्थान जहाँ पर सांसारिक बातें हैं वर्जित

चार जगहों पर सांसारिक बातें नहीं करनी चाहिए, केवल भगवत्स्मरण ही करना चाहिए । ये चार स्थान हैं : (1) श्मशान (2) रोगी के पास (3) मंदिर (4) गुरु-निवास ।
श्मशान में कभी गये तो ‘तुम्हारा क्या हाल है ? आजकल धंधा कैसा चल रहा है ? सरकार का ऐसा है...’ ऐसी इधर-उधर की बातें न करें वरन् अपने मन को समझायें कि ‘आज इसका शरीर आया, देर-सवेर यह शरीर भी ऐसे ही आयेगा । इसको ‘मैं-मैं’ मत मान, जहाँ से ‘मैं-मैं’ की शक्ति आती है वही मेरा है । प्रभु ! तू ही तू... तू ही तू... मैं तेरा, तू मेरा । अरे मन ! इधर-उधर की बातें मत कर । देख, वह शव जल रहा है, कभी यह शरीर भी जल जायेगा ।’ इस प्रकार मन को सीख दें ।
अगर श्मशान में जाने को न मिले तो आश्रम द्वारा प्रकाशित ‘ईश्वर की ओर’ पुस्तक सभी बार-बार पढ़ें । उससे भी मन विवेक-वैराग्य से सम्पन्न होने लगेगा ।
रोगी से मिलने जाओ तब भी संसार की बातें नहीं करनी चाहिए । रोगी से मिलते समय उसको ढाढ़स बँधाओ । उसको कहो : ‘रोग तुम्हारे शरीर को है । शरीर तो कभी रोगी, कभी स्वस्थ होता है लेकिन तुम तो भगवान के सपूत, अमर आत्मा हो । एक दिन यह शरीर नहीं रहेगा फिर भी तुम रहोगे, तुम तो ऐसे हो ।’ इस प्रकार रोगी में भगवद्भाव की बातें भरें तो आपका रोगी से मिलना भी भगवान की भक्ति हो जायेगा । रोगी के अंदर बैठा हुआ परमात्मा आप पर संतुष्ट होगा और आपके दिल में बैठा हुआ वह रब भी आप पर संतुष्ट होगा ।
अगर आप मंदिर या गुरु-आश्रम में जाते हो तो वहाँ पर भी सांसारिक चर्चा न करो,
इधर-उधर की बातें छोड़ दो । वहाँ तो ऐसे रहो कि एक-दूसरे को पहचानते ही नहीं और पहचानते भी हो तो रब के नाते । अन्यथा भगवान और गुरु का नाता तो ठंडा हो जाता है और पहचान बढ़ जाती है कि ‘आप मेरे घर आइये, आप यह करिये - आप वह करिये, जरा ध्यान रखना, उसका लड़का ठीक है, अपने ही हैं...’ मंदिर-आश्रम में जाकर भगवद्भाव जगाना होता है, संसार को भूलना होता है । अगर वहाँ जाकर भी संसार की बातें करोगे तो मुक्ति कहाँ पाओगे ? दुःखों से विनिर्मुक्त कहाँ होओगे ? इसलिए मुक्ति के रास्ते को गंदा मत करो वरन् गंदे रास्तों को भी भगवद्भक्ति से सँवार लो ।
अगर गुरु के निवास पर जाते हो, गुरु के निकट जाते हो तब भी सांसारिक बातों को महत्त्व न दो । गुरु को निर्दोष निगाहों से, प्रेमभरी निगाहों से, भगवद्भाव की निगाहों से देखो और उन्हें संसार की छोटी-छोटी समस्या सुनाकर उनका दिव्य खजाना पाने से वंचित न रहो । उनके पास से तो वह चीज मिलती है जो करोड़ों जन्मों में करोड़ों माता-पिताओं से भी नहीं मिली । ऐसे गुरु मिले हैं तो फिर संसार के छोटे-मोटे खिलौनों की बात नहीं करनी चाहिए ।
इस प्रकार चार जगहों पर सांसारिक चर्चा से बचकर भगवच्चर्चा, भगवत्सुमिरन करें । मंदिर एवं संतद्वार पर जप-ध्यान करें तो आपके लिए मुक्ति का पथ प्रशस्त हो जायेगा ।