Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

गर्भपात के महापाप से बचो और बचाओ

अपने पेट में दवाएँ डलवाकर अथवा कातिल साधनों द्वारा शिशु के टुकड़े-टुकड़े करके गर्भपात करवाना क्या पवित्र कार्य कहा जायेगा ? गर्भपात को पाप ही नहीं, महापाप माना गया है ।

क्या खायेंगे ?’ यह सोचकर अपने ही बच्चों को मार देना कहाँ तक उचित है ? जो जीव ८४ लाख योनियों में भटकते-भटकते आपके जैसे पवित्र कुलों में दिव्य ज्ञान पाने, भक्ति-साधना-सेवा करके मुक्ति के मार्ग पर जाने के लिए आया, उसीको आप पैसे देकर, जहरीली दवाओं-इंजेक्शनों द्वारा मरवा दोगे अथवा कातिल औजारों के द्वारा टुकड़े-टुकड़े करवा के फिंकवा दोगे ?

यह कर्मभूमि है । जो जैसे कर्म करता है, वैसे ही फल पायेगा ।

करम प्रधान बिस्व करि राखा ।

जो जस करइ सो तस फलु चाखा ।।

(श्री रामचरितमानस, अयोध्या कां. : २१८.२)

गर्भपात भ्रूणहत्या’ कहलाता है । इन्सान की हत्या से धारा ३०२’ लगती है परंतु भ्रूणहत्या ऋषि-हत्या के तुल्य है । लोक या परलोक में उसकी सजा अवश्य भुगतनी पड़ती है ।

भिक्षुहत्यां महापापी भ्रूणहत्यां च भारते ।

कुम्भीपाके वसेत्सोऽपि यावदिन्द्राश्चतुर्दश ।।

गृध्रो जन्मसहस्राणि शतजन्मानि सूकरः ।

काकश्च सप्त जन्मानि सर्पश्च सप्तजन्मसु ।।

षष्टिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमिः ।

नानाजन्मसु स वृषस्ततः कुष्ठी दरिद्रकः ।।

संन्यासी की हत्या करनेवाला तथा गर्भ की हत्या करनेवाला भारत में महापापी कहलाता है । वह मनुष्य कुम्भीपाक नरक में चौदह इन्द्रों के भोगकाल तक यातनाएँ भोगता है । फिर हजार जन्म गीध, सौ जन्म सुअर, सात जन्म कौआ और सात जन्म सर्प होता है । फिर ६० हजार वर्ष विष्ठा का कीड़ा होता है । फिर अनेक जन्मों में बैल और अंत में कंगाल एवं कोढ़ी होता है ।’

(देवी भागवत : ९.३४.२४,२७,२८)

अपने मन, शरीर, संतान व राष्ट्र के साथ जुल्म न करो । स्वयं तो स्वस्थ, संयमी बनो एवं राष्ट्र के लिए अपनी संतति को भी स्वस्थ, संयमी बनाकर महानता के पथ पर अग्रसर करो । 

गर्भपात पाप-निवृत्ति व शुद्धि हेतु

अपने ही बच्चे की गर्भ में नृशंस हत्या करवाने से शरीर रोगों का घर बनता है और परिवार कलह, अशांति एवं दुःख की भीषण ज्वालाओं में झुलसने लगता है । प्रसवकाल में माँ के शरीर को जितना खतरा होता है, उससे दुगना खतरा उसे गर्भपात करवाने से होता है ।

पराशर स्मृति’ (४.२०) में आता है :

यत्पापं ब्रह्महत्यायां द्विगुणं गर्भपातने ।

ब्रह्महत्या से जो पाप लगता है, उससे दुगना पाप गर्भपात करने से लगता है ।’

जिनसे जाने-अनजाने में यह अपराध हो चुका है, उनके लिए स्कंद पुराण’ में प्रायश्चित की विधि इस प्रकार बतायी गयी है : प्रणव और व्याहृति (ॐ भूः, ॐ भुवः, ॐ स्वः, ॐ महः, ॐ जनः, ॐ तपः, ॐ सत्यम्) के साथ किये हुए १६ प्राणायाम यदि प्रतिदिन होते रहें तो एक मास में वे भ्रूणहत्या करनेवाले पापी को भी पवित्र कर देते हैं (बशर्ते दुबारा यह पाप न करे) ।’

पहले दिन ५ प्राणायाम से प्रारम्भ करे । रोज एक-एक बढ़ाते हुए १६ तक पहुँचे, फिर प्रतिदिन १६ प्राणायाम एक मास तक करे । भगवान को इस पाप-निवृत्ति व शुद्धि के लिए प्रार्थना करे ।