Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

ऋषि प्रसाद सेवाधारियों को पूज्य बापूजी का अनमोल प्रसाद

इस प्रसाद के आगे करोड़ रुपये की भी कीमत नहीं

(ऋषि प्रसाद जयंती: 13 जुलाई)

ऋषि प्रसाद के सेवाधारियों को मैं शाबाशदेने से इनकार कर रहा हूँ । न शाबाश देना है, न धन्यवाद देना है और न ही कोई चीज-वस्तु या प्रमाणपत्र देना है क्योंकि दी हुई चीज तो छूट जायेगी । जो है

हाजरा-हुजूर जागंदी ज्योत ।

आदि सचु जुगादि सचु ।।

है भी सचु नानक होसी भी सचु ।।

उसमें इनको जगा देना है, बस हो गया !

ऋषि प्रसाद के एक-एक सेवाधारी को एक-एक करोड़ रुपये दें तो वे भी कोई मायना नहीं रखते हैं इस प्रसाद के आगे । करोड़ रुपये देंगे तो ये शरीर की सुविधा बढ़ा देंगे और भोगी बन जायेंगे । और भोगी आखिर नरकों में जाते हैं । लेकिन यह ज्ञान दे रहे हैं तो ये ज्ञानयोगी बन जायेंगे और ज्ञानयोगी जहाँ जाता है वहाँ नरक भी स्वर्ग हो जाता है ।

श्वास स्वाभाविक चल रहा है, उसमें ज्ञान का योग कर दो - सोऽ... हम्...। बुद्धि की अनुकूलता में जो आनंद आता है वह मेरा है । आपका आनंद कहाँ रहता है ? खोजो ! यह जान लो और आनंद लूटो, जान लो और मुक्ति का माधुर्य लो, जान लो और बन जाओ हर परिस्थिति के बाप, अपने-आप ! स्वर्ग भी नन्हा, नरक भी प्रभावहीन... सोऽहंस्वरूप... भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश जिस माधुर्य में रहते हैं उसके द्वार पहुँचा देता है यह ।

ऋषि प्रसादवालों को क्या देना? जो समाज और संत के बीच सेतु बने हैं उनको क्या बाहर की खुशामद, वाहवाही, शाबाशी दें ? यह तो उनका अपमान है, उनसे ठगाई है । ये तो नेता लोग दे सकते हैं : भई, इन्होंने यह सेवा की, बेचारों ने यह किया... यह किया... ।

ऋषि प्रसाद के लाखों सदस्य हैं और लाखों लोगों को ऋषि प्रसाद हाथों-हाथ मिलती है यह सब यश ऋषि प्रसाद के सदस्य बनानेवालों व उसे बाँटनेवालों के भाग्य में जाता है किंतु इससे तो उनका कर्तापन मजबूत बनेगा कि हमने सेवा की है, हमने ऋषि प्रसाद बाँटी है । हम बाँटनेवाले हैं, हम सेवा करनेवाले हैं...उसका तो जरा-सा पुण्य भोगेंगे - वाहवाही भोग के बस खत्म ! सेवा का फल वाहवाही, भोग नहीं चाहिए । सेवा का फल चीज-वस्तु नहीं, सेवा का फल कुछ नहीं चाहिए । तो तुच्छ अहं का जो कचरा पड़ा है वह ऐसी निष्काम सेवा से हटता जायेगा और अपना-आप जो पहले था, अभी है और जिसको काल-का-काल भी मार नहीं सकता वह अमर फल, आत्मफल प्रकट हो जायेगा; अपने-आपमें तृप्ति, अपने-आपमें संतुष्टि मिल जायेगी ।