Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

फास्ट युग में फास्ट प्रभुप्राप्ति हेतु...

– पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

आज के इस फास्ट युग में जैसे हम भोजन पकाने, कपड़े धोने, यात्रा करने, संदेश भेजने आदि व्यावहारिक कार्यों में फास्ट हो गये हैं, वैसे ही क्यों न हम प्रभु का आनंद, प्रभु का ज्ञान पाने में भी फास्ट हो जायें ?

पहले का जीवन शांतिप्रद जीवन था इसलिए सब काम शांति से, आराम से होते थे एवं उनमें समय भी बहुत लगता था । लोग भी दीर्घायु होते थे लेकिन आज हमारी जिंदगी इतनी लम्बी नहीं है कि सब काम शांति और आराम से करते रहें । सतयुग, त्रेता, द्वापर में लोग हजारों वर्षों तक जप-तप-ध्यान आदि करते थे, तब प्रभु को पाते थे । किंतु आज के मनुष्य की न ही उतनी आयु है, न ही उतनी सात्त्विकता, पवित्रता और क्षमता है कि वर्षों तक माला घुमाता रहे और तप करता रहे । अतः आज की इस फास्ट लाइफमें प्रभु की मुलाकात करने में भी फास्टसाधनों की आदत डाल देनी चाहिए । उस प्यारे प्रभु से हमारा तादात्म्य भी ऐसा फास्टहो कि दिल-ए-तस्वीर है यार !

जब भी गर्दन झुका ली, मुलाकात कर ली 

बस, आप यह कला सीख लो । आप पूजा-कक्ष में बैठें तभी आपको भक्ति, ज्ञान या प्रेम का रस आये ऐसी बात नहीं है वरन् आप घर में हों या दुकान में, नौकरी कर रहे हों या फुरसत में, यात्रा में हों या घर के किसी काम में... हर समय आपका ज्ञान, आनंद एवं माधुर्य बरकरार रह सकता है । युद्ध के मैदान में अर्जुन निर्लेप नारायण तत्त्व का अनुभव कर सकता है तो आप चालू व्यवहार में उस परमात्मा का आनंद-माधुर्य क्यों नहीं पा सकते ? गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं :

तन सुखाय पिंजर कियो, धरे रैन दिन ध्यान ।

तुलसी मिटे न वासना, बिना विचारे ज्ञान ।।

शरीर को सुखाकर पिंजर (कंकाल) कर देने की भी आवश्यकता नहीं है । व्यवहारकाल में जरा-सी सावधानी बरतो और कल्याण की कुछ बातें आत्मसात् करते जाओ तो प्रभु का आनंद पाने में कोई देर नहीं लगेगी ।

तीन बातों से जल्दी कल्याण होगा

पहली बात : भगवद्-स्मरण । सच्चे हृदय से हरि का स्मरण करो । संत तुलसीदासजी ने कहा है :

भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ ।

नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ।।

(श्री रामचरित. बा.कां. : 27.1)

भाव से, कुभाव से, क्रोध से, आलस्य से भी यदि हरि का नाम लिया जाता है तो दसों दिशाओं में मंगल होता है तो फिर सच्चे हृदय से हरि का स्मरण करने से कितना कल्याण होगा !

जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिः

जपात् सिद्धिर्न संशयः ।

जप करते रहो... हरि का स्मरण करते रहो... इससे आपको सिद्धि मिलेगी । आपका मन सात्त्विक होगा, पवित्र होगा और भगवद्रस प्रकट होने लगेगा ।

दूसरी बात : प्राणिमात्र का मंगल चाहो । यहाँ हम जो देते हैं, वही हमें वापस मिलता है और कई गुना होकर मिलता है । यदि आप दूसरों को सुख पहुँचाने का भाव रखेंगे तो आपको भी अनायास ही सुख मिलेगा । अतः प्राणिमात्र को सुख पहुँचाने का भाव रखो ।

तीसरी बात : अपने दोष निकालने के लिए तत्पर रहो । जो अपने दोष देख सकता है, वह कभी-न-कभी दोषों को दूर करने के लिए भी प्रयत्नशील होगा ही । ऐसे मनुष्य की उन्नति निश्चित है । जो अपने दोष नहीं देख सकता वह तो मूर्ख है लेकिन जो दूसरों के द्वारा दिखाने पर भी अपने दोषों को कबूल नहीं करता है वह महामूर्ख है और जो परम हितैषी सद्गुरु के कहने पर भी अपने में दोष नहीं मानता है (अर्थात् सफाई मारता है, बहाने बनाता है, अपने को निर्दोष साबित करके अपने दोषों को ढकने का प्रयास करता है) वह तो मूर्खों का शिरोमणि है । जो अपने दोष निकालने के लिए तत्पर रहता है वह इसी जन्म में निर्दोष नारायण का प्रसाद पाने में सक्षम हो जाता है ।

जो इन तीन बातों का आदर करेगा और सत्संग एवं स्वाध्याय में रुचि रखेगा, वह कल्याण के मार्ग पर शीघ्रता से आगे बढ़ेगा ।