हर मनुष्य, जीव-जंतु, पशु, पेड़-पौधा या वस्तु के चारों ओर सप्तरंगीय ऊर्जा तरंगें निष्कासित होती रहती हैं व एक अति सूक्ष्म गोलीय चक्र-सा प्रतिबिम्ब रहता है, जिसको ‘आभामंडल (ओरा)’ कहते हैं । देवी-देवताओं तथा संत-महापुरुषों के श्रीचित्रों में उनके सिर के पीछे दिखनेवाला चमकीला, रंगीन गोल घेरा उनके आभामंडल का ही प्रतीक है । साधारण मनुष्यों में यह आभामंडल 2-3 फीट दूरी तक गोलाईवाला माना जाता है । जिस व्यक्ति के आभामंडल का दायरा जितना अधिक होता है, वह उतना ही अधिक कार्यक्षम, मानसिक रूप से क्षमतावान व स्वस्थ होता है ।
परीक्षणों से सिद्ध हुआ है कि ‘देशी गाय, तुलसी, पीपल आदि के पूजन की परम्परा का एक ठोस वैज्ञानिक आधार यह भी है कि इनसे ब्रह्मांडीय (धनात्मक) ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है ।’
महाभारत (अनुशासन पर्व : 83.5) में पितामह भीष्म कहते हैं :
गावस्तेजः परं प्रोक्तमिह लोके परत्र च ।
न गोभ्यः परमं किंचित् पवित्रं भरतर्षभ ।।
‘भरतश्रेष्ठ ! गौएँ इहलोक और परलोक में भी महान तेजोरूप मानी गयी हैं । गौओं से बढ़कर पवित्र कोई वस्तु नहीं है ।’
देशी गौओं का आभामंडल सामान्य मनुष्य तथा अन्य पशुओं के आभामंडल से ज्यादा व्यापक होता है । यही कारण है कि गायों की परिक्रमा करने से उनके आभामंडल के प्रभाव में आकर हमारी धनात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है तथा हमारे आभामंडल का दायरा बढ़ता है । यह बात ओरा विशेषज्ञ के. एम. जैन ने एक वैज्ञानिक तरीके से प्रमाणित भी की है । डॉ. चारूदत्त पिंगले के अनुसार भारतीय गायों का आभामंडल लगभग 8 मीटर का होता है ।
भारतीय परमाणु वैज्ञानिक डॉ. मेनम मूर्ति द्वारा निर्मित आभामंडल मापने के यंत्र ‘यूनिवर्सल स्कैनर’ द्वारा किसीके भी आभामंडल का दायरा मापा जा सकता है । आंध्र प्रदेश में पायी जानेवाली देशी प्रजाति ‘पुंगानुर गाय’ के आभामंडल का दायरा तो 120 फीट तक पाया गया है ।
गायों की इस धनात्मक ऊर्जा का लाभ समाज को मिल सके, शायद इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमारे शास्त्रों व महापुरुषों ने देशी गाय की परिक्रमा, स्पर्श, पूजन आदि की व्यवस्था की है ।