मंत्रदीक्षा के पहले ऐसा कोई व्यसन नहीं था जो मेरे जीवन में न हो । मैं रोज सिगरेट, शराब-कबाब का सेवन करता था । सन् 1988 में कांदिवली (मुंबई) में पूज्य बापूजी का सत्संग था । मित्र के आग्रह से मैं वहाँ गया । वहाँ पहली बार मैंने पूज्य बापूजी के दर्शन किये पर बिना श्रद्धा के, किंतु उनकी करुणा तो देखो ! शाम को घर पहुँचा तो मुझे न शराब, न ही सिगरेट पीने की इच्छा हुई । मुझे लगा कि जिनके दर्शनमात्र से मेरे सब व्यसन छूट गये उनकी शरण में जाना चाहिए । अगले दिन घाटकोपर में सत्संग था । मैंने वहाँ बड़ी श्रद्धा से दर्शन-सत्संग का लाभ लिया । उसके बाद तो मेरा पूरा जीवन ही बदल गया । सदाचरण मेरे जीवन में आ गया ।
बापूजी को पाकर मेरी तरह लाखों-करोड़ों का जीवन बदला है । यदि मुझे बापूजी नहीं मिलते तो मैं हत्यारा, जुआरी व शराबी ही होता और न जाने आज कहाँ, किस हालत में होता !
यह बापूजी की कृपा का ही प्रताप है कि अब मेरा मन सेवा-साधना में रम रहा है । और अभी मैं विक्रोली के ‘ऋषि प्रसाद सेवा मंडल’ का प्रमुख हूँ ।
‘ऋषि प्रसाद’ पढ़कर लोगों का विवेक जगता है, जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझ में आता है, उलझे सवालों का हल मिलता है तथा बापूजी जैसे परम हितैषी महापुरुष के प्रति श्रद्धा जागृत होती है, जिससे वे सत्संग में आकर बापूजी से दीक्षा ले लेते हैं । इसलिए मैं ‘ऋषि प्रसाद’ सेवा का बड़ा सम्मान करता हूँ और जब तक मेरा जीवन रहेगा, इस सेवा को निष्ठा से करता रहूँगा ।
- दिनेश जयसवाल, विक्रोली, मुंबई