ईश्वर में मन लगायें कि नहीं लगायें ? अगर ईश्वर में मन लगायें तो फिर पढ़ने में मन कैसे लगेगा ? बताओ, अब क्या करना चाहिए बच्चों को ? बोले, ‘मन लगा के पढ़ना चाहिए ।’ यह बात भी सच्ची है । फिर बोलते हैं : ‘ईश्वर के सिवाय कहीं भी मन लगाया तो अंत में रोना ही पड़ेगा !’ तो अब क्या करें बच्चे ? बोलो ! जा के मंदिर में बैठोगे क्या ? नहीं । तो क्या यह बात झूठी है कि ‘ईश्वर के सिवाय कहीं भी मन लगाया तो अंत में रोना ही पड़ेगा’ ? झूठी नहीं है, सच्ची है, बिल्कुल सच्ची है । ईश्वर ही एक निर्दुःख तत्त्व है । ईश्वर ही एक अविनाशी तत्त्व है और ईश्वर में मन लगाया तो पढ़ने में मन लगना बड़ा आसान हो जायेगा । जिसने ईश्वर में मन लगाने की रीत जान ली, वह कहीं भी मन लगायेगा तो उस विषय में छक्के लग जायेंगे उसके । क्योंकि ‘रसो वै सः ।’ ईश्वर रसस्वरूप हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, करुणामय हैं, प्रेरणादाता हैं फिर वे अपने भक्त को विफल क्यों होने देंगे ?
जिसका जितने अंश में ईश्वर में मन टिका उतना वह माँ-बाप के लिए, देश के लिए, समाज के लिए, और भी सबके लिए हितकारी होगा । आइंस्टीन ध्यान करते थे, पत्नी सुंदर, आज्ञाकारिणी थी फिर भी वर्षों तक विकारों में मन नहीं लगाया, ईश्वर में मन लगाया तो आइंस्टीन कितने बड़े वैज्ञानिक हो गये । नहीं हुए क्या ? जिन महापुरुषों को इतने लोग स्नेह करते हैं, इतने लोग उनका प्रवचन सुनते हैं, वे ज्यादा पढ़े नहीं हैं लेकिन फिर भी उनके पास कैसा-कैसा है कि उनका अनुसरण करते हैं लाखों लोग ! तो यह ईश्वर में मन लगाने का फल कैसा है ! ईश्वर में मन लगाकर ही संसार की इन सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है, नहीं तो नहीं हो सकता । जितने अंश में आप ईश्वर के करीब होते हो, उतने अंश में आप नैतिक होते हो, उतने अंश में आप व्यवहार में भी बराबर सज्जन होते हो । ईश्वर में मन लगेगा तो ईश्वर है सत्-चित्-आनंदस्वरूप, ईश्वर के 26 दैवी गुण हैं, वह दैवी सम्पदा आपमें आने लगेगी । - पूज्य संत श्री आशारामजी बापू