Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

तस्वीर बनी इत्र का झरना

महाराष्ट्र में प्रथा है कि यहाँ हर पूजा आम के पत्ते, इत्र, हल्दी, कुम्कुम, पंचामृत आदि के साथ की जाती है । दिनांक 13 मई 2012 को मेरे घर पूज्य बापूजी के करकमलों से प्रज्वलित ज्योत का सात दिवसीय ज्योत-उत्सव होनेवाला था ।

ज्योत के आने का समय हो गया था । सारी तैयारियाँ हो गयी थीं, केवल इत्र लाना बाकी था । मैं तो सोच में पड़ गयी । तभी पड़ोस की साधिका बहन आयी । प्रवेश करते ही उन्हें सुगंध आने लगी जैसे मैंने इत्र छाँटा हो। किंतु इत्र तो था ही नहीं ! खोजते-खोजते पता चला कि वह दिव्य सुगंध पूज्य बापूजी के श्रीचित्र से आ रही है । अचानक उन बहन ने बापूजी के श्रीचित्र पर हाथ घुमाया । आश्चर्य ! हाथ गीला हो गया और हाथ से वही दिव्य सुगंध आने लगी । हम सबकीआँखों से भाव-धाराएँ बह चलीं । इस अलौकिक इत्र को सात दिनों तक हमने रुई से एकत्रित किया ।

सात दिनों तक जो श्रद्धालु भजन-कीर्तन, श्री आशारामायण पाठ का लाभ लेने आते रहे, उन्हें भी इस दिव्य सुगंध का अनुभव हुआ ।

इस अद्भुत लीला के कुछ महीनों बाद मैं पूज्य बापूजी के दर्शन-सत्संग के लिए गोधरा (गुज.) गयी । वहाँ जब बापूजी रेलगाड़ी पर दर्शन देने आये तो मेरे कुछ बोलने से पहले ही उन्होंने प्रेमवर्षा कर दी : ‘‘तू अकेली-अकेली सुगंध लेगी, मुझे नहीं देगी ?’’ ये वचन सुनकर कुछ क्षणों के लिए तो मैं मौन हो गयी । आँखों से प्रेमाश्रुओं की धार बह चली । कुछ सँभलकर मैंने गुरुदेव के श्रीचरणों में इत्र अर्पित करते हुए कहा : ‘‘तेरा तुझको देत हैं, क्या लागत है मोर ।’’

पड़ोसी साधिका बहन को काफी दिनों से कान में दर्द हो रहा था । दवा भी काम नहीं कर रही थी । उन्होंने श्रद्धापूर्वक इस इत्र की कुछ बूँदें कान में डालीं तो महीनों का दर्द एक बार में ठीक हो गया ! अब तो हर पर्व-त्यौहार पर इत्र की धार बह चलती है । इसके कई लोग साक्षी हैं । कैसी करुणा-कृपा है गुरुदेव की ! पूज्य बापूजी के श्रीचरणों में मेरे शत-शत नमन !

- विमल धूमनवार, वणी (महा.) मो. : 8975181764