♦ एक मुसाफिर ने रोम देश में एक मुसलमान लुहार को देखा। वह लोहे को तपाकर लाल करके उसे हाथ में पकड़कर वस्तुएँ बना रहा था, फिर भी उसका हाथ जल नहीं रहा था। यह देखकर मुसाफिर ने पूछाः "भैया ! यह कैसा चमत्कार है कि तुम्हारा हाथ नहीं जल रहा।"
लुहारः "इस पानी (नश्वर) दुनिया में मैं एक स्त्री पर मोहित हो गया था और उसे पाने के लिए सालों तक कोशिश करता रहा परंतु उसमें मुझे असफलता ही मिलती रही। एक दिन ऐसा हुआ कि जिस स्त्री पर मैं मोहित था उसके पति पर कोई मुसीबत आ गयी।
♦ उसने अपनी पत्नी से कहाः "मुझे धन की अत्यधिक आवश्यकता है। यदि उसका बंदोबस्त न हो पाया तो मुझे मौत को गले लगाना पड़ेगा। अतः तुम कुछ भी करके, तुम्हारी पवित्रता बेचकर भी मुझे कुछ धन ला दो।' ऐसी स्थिति में वह स्त्री,जिसको मैं पहले से ही चाहता था, मेरे पास आयी। उसे देखकर मैं बहुत ही खुश हो गया। सालों के बाद मेरी इच्छा पूर्ण हुई। मैं उसे एकांत में ले गया। मैंने उससे आने का कारण पूछा तो उसने सारी हकीकत बतायी। उसने कहाः 'मेरे पति को धन की बहुत आवश्यकता है। अपनी इज्जत व शील को बेचकर भी मैं उन्हें कुछ धन लाकर देना चाहती हूँ। आप मेरी मदद कर सकें तो आपकी बड़ी मेहरबानी।'
तब मैंने कहाः "थोड़ा धन तो क्या, तुम जितना भी माँगोगी, मैं देने को तैयार हूँ।"
♦ में कामांध हो गया था, मकान के सारे खिड़की-दरवाजे बंद किये। कहीं से थोड़ा भी दिखाई दे ऐसी जगह भी बंद कर दी,ताकि हमें कोई देख न ले। फिर मैं उसके पास गया।
उसने कहाः 'रुको ! आपने सारे खिड़की-दरवाजे, छेद व सुराख बन्द किये हैं, जिससे हमें कोई देख न सके लेकिन मुझे विश्वास है कि कोई हमें अब भी देख रहा है।'
मैंने पूछाः 'अब भी कौन देख रहा है ?'
♦ 'ईश्वर ! ईश्वर हमारे प्रत्येक कार्य को देख रहे हैं। आप उनके आगे भी कपड़ा रख दो ताकि आपको पाप का प्रायश्चित न करना पड़े।' उसके ये शब्द मेरे दिल के आर-पार उतर गये। मेरे पर मानो हजारों घड़े पानी ढुल गया। मुझे कुदरत का भय सताने लगा। मेरी सारी वासना चूर-चूर हो गयी। मैंने खुदा से माफी माँगी और अपनी इस दुर्वासना के लिए बहुत ही पश्चाताप किया। परमेश्वर की अनुकम्पा मुझ पर हुई। भूतकाल में किये हुए कुकर्मों की माफी मिली, इससे मेरा दिल निर्मल हो गया।मैंने सारे खिड़की-दरवाजे खोल दिये और कुछ धन लेकर उस स्त्री के साथ चल पड़ा। वह स्त्री मुझे अपने पति के पास ले गयी। मैंने धन की थैली उसके पास रख दी और सारी हकीकत कह सुनायी। उस दिन से मुझे प्रत्येक वस्तु में खुदाई नूर दिखने लगा है। तब से अग्नि, वायु व जल मेरे अधीन हो गये हैं।"
- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू"