Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

स्वास्थ्यवर्धक एवं पथ्यकर करेला

करेला कड़वा, पित्त व कफ शामक, रक्तशुद्धिकर, मल-निस्सारक एवं मूत्रजनन है । करेले की सब्जी खाने या रस पीने से पाचनशक्ति मजबूत होती है । रक्ताल्पता (anaemia)  में इसके रस का सेवन करना हितकारी है । जले हुए स्थान पर इसके रस का लेप करने से जलन शांत होती है । यह अरुचि, भूख की कमी, आमदोष, कृमि, रक्तविकार, खून की कमी, खाँसी, दमा, मासिक धर्म की कमी, मोटापा आदि में लाभदायी है ।

सूजन, गठिया, वातरक्त, यकृत (liver) व तिल्ली की वृद्धि एवं पुराने चर्मरोग, बुखार, अजीर्ण, मधुमेह, बवासीर, वातरोग, प्रमेह (मूत्र-संबंधी विकारों), शरीर में दर्द, हाथीपाँव, घेंघा, सूजाक (gonorrhoea), विसर्प (herpes), मुँह व कान के रोग, नेत्रदृष्टि की कमजोरी, कफजन्य रोगों आदि में करेले की सब्जी का सेवन लाभकारी है ।

मधुमेह में यह उत्तम कार्य करता है । इससे रक्तगत शर्करा कम होती है तथा सूक्ष्म मल एवं आमदोष का नाश होता है । यकृत तथा आमाशय की क्रिया सुधरती है तथा अग्न्याशय उत्तेजित होकर इंसुलिन का स्राव बढ़ता है ।

आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार करेले में विटामिन ए, बी, सी तथा कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह आदि खनिज पाये जाते हैं ।

औषधीय प्रयोग

(1) संधिवात व गठिया में: करेलों को आग पर भून के भुरता बनाकर दिन में एक बार 100 ग्राम तक यह भुरता खायें । 10 दिन तक यह प्रयोग करने से स्नायुगत वात, संधिवात आदि में लाभ होता है । करेले के रस को गर्म करके दर्दवाले स्थान पर प्रतिदिन 2-3 बार लेप करना भी लाभदायी है ।

(2) तिल्ली (spleen) की वृद्धि: 1 कप पानी में करेले का 25 मि.ली. रस मिला के दिन में 1-2 बार पीने से तिल्ली का बढ़ना कम हो जाता है ।

(3) अम्लपित्त (hyperacidity): करेले के भुरते में सेंधा नमक मिला के भोजन के साथ खाने से अम्लपित्त दूर होता है ।

(4) मोटापा: करेले के 20-30 मि.ली. रस में एक नींबू का रस मिला के सुबह सेवन करने से मोटापा कम होता है ।

(5) मंद बुखार, शरीर में दर्द, भूख न लगना व आँखें भारी होना: करेले के छोटे-छोटे टुकड़े करके रातभर ठंडे पानी में भिगोकर रखें । इस पानी को दिनभर में थोड़ा-थोड़ा पियें तो लाभ होता है ।

(6) मधुमेह (diabetes): करेलों को काट के कुछ देर तक पैरों से कुचलें । यह प्रयोग मधुमेह में बहुत लाभकारी है । (प्रयोग-विधि जानने हेतु पढ़ें ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2018 का पृष्ठ 32)

विशेष : प्रायः सब्जी बनाते समय करेले के हरे छिलके व कड़वा रस निकाल दिया जाता है । इससे करेले के गुण बहुत कम हो जाते हैं अतः छिलके उतारे बिना तथा कड़वापन दूर किये बिना सब्जी बनानी चाहिए ।