प्रेम का बाप है विश्वास और विश्वास का बाप है सच्चाई । पति-पत्नी को एक-दूसरे से सच्चाई से पेश आना चाहिए । पत्नी एक बार झूठ बोलेगी, दो बार, पाँच बार, दस बार तो आखिर पति भी तो रोटी खाता है, उसे पता चल जायेगा । पति भी दस बार झूठ बोलेगा तो आखिर पत्नी भी तो रोटी खाती है, पति की भी पोल खुल जायेगी । इसलिए एक-दूसरे को झाँसा देकर पटा के नहीं जीना चाहिए । सच्चाई से बोल दो कि ‘देखो, तुमको सुनकर अच्छा तो नहीं लगेगा लेकिन मेरे से ऐसा हो गया... मैं सत्य बोलता हूँ ।’ घुमा-फिराकर आप जितना दूसरों के सामने अच्छा दिखने का दिखावा करोगे, उतनी ही आपकी उस ‘अच्छाई’ की पोल खुल जायेगी । लेकिन सच्चाई से जितने तुम अच्छे दिखोगे, उतना ही तुम्हारे प्रति दूसरों में विश्वास बढ़ेगा ।
मैं आपको सच बताता हूँ कि और लोग तो चन्द्रमा को अर्घ्य देते हैं लेकिन मेरे बेटे की माँ व्रत खोलती है तो मुझे अर्घ्य देकर फिर खाना खाती है, विश्वास की बात है ।
बेटा पिता पर विश्वास करे कि ‘मेरे पिताजी जो करते हैं, मेरी भलाई के लिए करते हैं ।’ आप गृहस्थ-जीवन जियो तो बेटे का सद्भाव सम्पादन करो । बेटा बाप के प्रति सद्भाव रखे, पति पत्नी के प्रति रखे । फिर चाहे रूखी रोटी हो चाहे चुपड़ी हो, चाहे खूब यश हो चाहे अपयश की आँधी चले, कोई फर्क नहीं पड़ता । सङ्गच्छध्वं सं वदध्वं... कंधे-से-कंधा मिलाकर सजातीय विचार रख के जीना चाहिए ।
गृहस्थ-जीवन का यही सार है ।
एक-दूसरे के प्रति शक विदेश में बहुत है । पत्नी का बैंक-खाता अलग, पति का खाता अलग, पति पत्नी से छुपाये, पत्नी पति से छुपाये, उसके बॉय फ्रेंड अलग, उसकी गर्ल फ्रेंड अलग... बड़ा जहरी जीवन है । लेकिन यह गंदगी हमारे भारत में न बढ़े इसलिए मैं इस उम्र में भी खूब दौड़-धूप कर रहा हूँ । मेरा उद्देश्य यही है कि भारतीय संस्कृति की गरिमा का फायदा भारतवासियों को तो मिले, साथ ही विश्व के लोगों को भी मिले । और देर-सवेर भारत विश्वगुरु होगा, मेरे इस संकल्प को कोई तोड़ नहीं सकता, रोक नहीं सकता ।