होली का सही लाभ लें
होलिकां आगतां दृष्ट्वा हृदयी हर्षन्ति मानवाः ।
पापमुक्तास्तु संजाता क्षुद्रता विलयं गताः ।।
होलिका आने पर लोग हर्षित होते हैं, पापमुक्त होते हैं और क्षुद्रता दूर चली जाती है । हृदय की संकीर्णता, नाखुशी क्षुद्रता है । हृदय में खुशी आना माना क्षुद्रता का चले जाना ।
हृदय हर्षित हो यह ठीक है लेकिन पाप करके नहीं, पाप निवृत्त करके हृदय हर्षित हो यह शर्त है । अगर पाप करके हृदय हर्षित होता है तो थोड़ी देर के लिए हर्ष होगा और लम्बा समय शोक मिलेगा । पाप निवृत्त करके हर्षित होता है तो वह फिर निवृत्तस्वरूप चैतन्य परब्रह्म परमात्मा के तत्त्व का, स्वरूप का अनुभव करने का अधिकारी हो जायेगा । पाप करते हुए जो हर्षित होता है वह अधःपतन की तरफ जाता है और पाप निवृत्त करते हुए जो हर्षित होता है उसका उत्थान होता है । पापनिवृत्ति से एवं पुण्यकर्म व पुण्यसत्संग से जो प्रसन्नता होती है, शांति होती है, वही असली उत्थान की यात्रा है ।
तो हृदय की क्षुद्रता जाय । एक होती है वस्तुओं की क्षुद्रता - ‘वस्तुएँ कम हैं, थोड़ी हैं...’ और दूसरी होती है हृदय की क्षुद्रता - वस्तुएँ हैं या नहीं लेकिन हृदय संकीर्ण है । ऐसे पर्व के दिन ऐसी वस्तुएँ लायी जायें कि बहुतों तक पहुँचें ।
यह होलिकोत्सव हृदय की क्षुद्रता तोड़ने का संकेत देता है लेकिन दुःख की बात है कि ऐसे उत्सव पर लोग गलती से हृदय की क्षुद्रता बढ़ाने का भी काम कर लेते हैं । हकीकत में इन पर्वों में राष्ट—ीयता, सामाजिकता, धार्मिकता और आरोग्य का विकास छुपा हुआ है लेकिन हलकी मति के लोग इन उत्सवों पर कुछ दूसरा ही रंग-ढंग करके लाभ की जगह पर हानि उठाते हैं तथा औरों को भी पहुँचाते हैं । किसीको गाली देकर, किसीका अपमान करके अथवा किसीको हानि करनेवाले रासायनिक रंग लगा के हर्ष पैदा करना हर्ष नहीं है । रासायनिक रंग, डामर (तारकोल) आदि लगाना या वीभत्स व्यवहार करना अथवा मद्यपान करना यह तो हृदय को महाक्षुद्रता में गिरा देता है ।
स्वास्थ्य-सुरक्षा का अनुपम संदेश
यह वासंतिक महोत्सव है अतः इन दिनों में स्वास्थ्य-सुरक्षा व अंतःकरण की सुरक्षा तथा समाज में स्नेह व सज्जनता की स्थापना के लिए सुबह-सुबह प्रभातफेरियाँ निकालनी चाहिए । मुहल्ले-मुहल्ले प्रभातफेरियाँ निकलनी चाहिए । होली पूनम के दिन चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए थे । ऐसे रामरस, हरिरस बाँटनेवाले संतों के जीवन-चरित्र के स्वांग (नाटक) करने चाहिए ।
मौसम के बदलने से शरीर में जो कफ आदि जमा हो गया है उसको नष्ट करने के लिए धाणी (खीलें या लावा) और चने, गेहूँ आदि भूना हुआ अनाज खाना-खिलाना चाहिए । होलिका जलाकर प्रदक्षिणा की जाती है अर्थात् प्रदक्षिणा करते समय शरीर को गर्मी का वातावरण मिले, शरीर में जो कफ जमा है वह विलय हो जाय; और नारियल अर्पित किया जाता है अर्थात् अपने अहंकाररूपी नारियल को ज्ञानाग्नि में स्वाहा करने का संकेत है । इस प्रकार का सूक्ष्म अध्ययन करके मानव की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति हो ऐसा आयोजन अगर किसी संस्कृति में पूर्ण रूप से देखना हो तो वह भारतीय संस्कृति में दिखाई पड़ता है ।
होलिका आगतां दृष्ट्वा... होली आ रही है ऐसा देखकर चित्त मेें प्रसन्नता आती है । आज का विज्ञान कहता है कि जब आदमी अंदर अशांत, विक्षिप्त, दुःखी होता है तब अंधा होकर शराब के नशे में या कामविकार में गिरता है । हृदय जिसका प्रसन्न है, पवित्र है वह शराब के नशे में या विकार में नहीं गिरता, वह तो रामनाम की प्यालियाँ पियेगा-पिलायेगा और नारायण के रस में जगेगा और जगायेगा ।