ग्रीष्म ऋतु में दुर्बल हुआ शरीर वर्षा ऋतु में धीरे-धीरे बल प्राप्त करने लगता है । आद्र्र वातावरण जठराग्नि को मंद करता है । वर्षा ऋतु में वात-पित्तजनित व अजीर्णजन्य रोगों का प्रादुर्भाव होता है, अतः सुपाच्य, जठराग्नि प्रदीप्त करनेवाला वात-पित्तशामक आहार लेना चाहिए ।
हितकर आहार : इस ऋतु में जठराग्नि प्रदीप्त करनेवाले अदरक, लहसुन, नींबू, पुदीना, हरा धनिया, सोंठ, अजवायन, मेथी, जीरा, हींग, काली मिर्च, पीपरामूल का प्रयोग करें । जौ, खीरा, लौकी, गिल्की, पेठा, तोरई, जामुन, पपीता, सूरन, गाय का घी, तिल का तेल तथा द्राक्ष सेवनीय हैं । ताजी छाछ में काली मिर्च, सेंधा नमक, जीरा, धनिया, पुदीना डालकर दोपहर भोजन के बाद ले सकते हैं । उपवास और लघु भोजन हितकारी है । रात को देर से भोजन न करें ।
अहितकर आहार : देर से पचनेवाले, भारी, तले, तीखे पदार्थ न लें । जलेबी, बिस्कुट, डबलरोटी आदि मैदे की चीजें, बेकरी की चीजें, उड़द, अंकुरित अनाज, ठंडे पेय पदार्थ व आइसक्रीम के सेवन से बचें । वर्षा ऋतु में दही पूर्णतः निषिद्ध है । श्रावण मास में दूध व हरी सब्जियाँ वर्जित हैं ।
हितकर विहार : उबटन से स्नान, तेल की मालिश, हलका व्यायाम, स्वच्छ व हलके वस्त्र पहनना हितकारी है । वातावरण में नमी और आद्र्रता के कारण उत्पन्न कीटाणुओं से सुरक्षा हेतु आश्रमनिर्मित धूप व हवन से वातावरण को शुद्ध तथा गौसेवा फिनायल या गोमूत्र से घर को स्वच्छ रखें । घर के आसपास पानी इकट्ठा न होने दें। मच्छरों से सुरक्षा के लिए घर में गेंदे के पौधों के गमले अथवा गेंदे के फूल रखें और नीम के पत्ते, गोबर के कंडे व गूगल आदि का धुआँ करें ।
अपथ्य विहार : दिन में शयन, रात्रि-जागरण, खुले में शयन, अति व्यायाम और परिश्रम, नदी में नहाना, बारिश में भीगना वर्जित है । कपड़े गीले हो गये हों तो तुरंत बदल दें ।
कुछ खास प्रयोग :
* ५०० ग्राम हरड़ चूर्ण व ५० ग्राम सेंधा नमक का मिश्रण बना लें । (उसमें १२५ ग्राम सोंठ भी मिला सकते हैं ।) २-४ ग्राम यह मिश्रण दिन में १-२ बार लेने से ‘रसायन’ के लाभ प्राप्त होते हैं ।
* नागरमोथा, बड़ी हरड़ और सोंठ तीनों को समान मात्रा में लेकर बारीक पीस के चूर्ण बना लें । इस चूर्ण से दुगनी मात्रा में गुड़ मिलाकर बेर समान गोलियाँ बना लें । दिन में ४-५ बार १-१ गोली चूसने से कफयुक्त खाँसी में राहत मिलती है ।
* १ से ३ लौंग भूनकर तुलसी-पत्तों के साथ चबाकर खाने से सभी प्रकार की खाँसी में लाभ होता है ।
* वर्षा ऋतु में दमे के रोगियों की साँस फूले तो १०-२० ग्राम तिल के तेल को गर्म करके पीने से राहत मिलती है । ऊपर से गर्म पानी पियें ।
* भोजन के पूर्व नींबू और अदरक के रस में सेंधा नमक डालकर पीने से मंदाग्नि व अजीर्ण में लाभ होता है ।
* कब्ज की तकलीफ होने पर रात में त्रिफला चूर्ण लें । रात का रखा हुआ आधा से एक लीटर पानी सुबह बासी मुँह पीने से कब्ज का नाश होता है ।