Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

शरद ऋतु में कैसे करें स्वास्थ्य की रक्षा ?

- संत श्री आशारामजी बापू

 (शरद ऋतु: 22 अगस्त से 22 अक्टूबर तक)

 

शरद ऋतु में ध्यान देने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें :

(1) रोगाणां शारदी माता । रोगों की माता है यह शरद ऋतु । वर्षा ऋतु में संचित पित्त इस ऋतु में प्रकुपित होता है । इसलिए शरद पूर्णिमा की चाँदनी में उस पित्त का शमन किया जाता है ।

इस मौसम में खीर खानी चाहिए । खीर को भोजनों में रसराजकहा गया है । सीता माता जब अशोक वाटिका में नजरकैद थीं तो रावण का भेजा हुआ भोजन तो क्या खायेंगी, तब इन्द्र देवता खीर भेजते थे और सीताजी वह खाती थीं 

(2) इस ऋतु में दूध, घी, चावल, लौकी, पेठा, अंगूर, किशमिश, काली द्राक्ष तथा मौसम के अनुसार फल आदि स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं । गुलकंद खाने से भी पित्तशामक शक्ति पैदा होती है । रात को (सोने से कम-से-कम घंटाभर पहले) मीठा दूध घूँट-घूँट मुँह में बार-बार घुमाते हुए पियें । दिन में 7-8 गिलास पानी शरीर में जाय, यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा है । (किशमिश व गुलकंद संत श्री आशारामजी आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं । - संकलक)

(3) खट्टे, खारे, तीखे पदार्थ व भारी खुराक का त्याग करना बुद्धिमत्ता है । तली हुईं चीजें, अचारवाली खुराक, रात को देरी से खाना अथवा बासी खुराक खाना और देरी से सोना स्वास्थ्य के लिए खतरा है क्योंकि शरद ऋतु रोगों की माता है । कोई भी छोटा-मोटा रोग होगा तो इस ऋतु में भड़केगा इसलिए उसको बिठा दो ।

(4) शरद ऋतु में कड़वा रस बहुत उपयोगी है । कभी करेला चबा लिया, कभी नीम के 10-12 पत्ते चबा लिये । यह कड़वा रस खाने में तो अच्छा नहीं लगता लेकिन भूख लगाता है और भोजन को पचा देता है ।

(5) पाचन ठीक करने का एक मंत्र भी है :

अगस्त्यं कुम्भकर्णं च शनिं च वडवानलम् 

आहारपरिपाकार्थं स्मरेद् भीमं च पंचमम् ।।

यह मंत्र पढ़ के पेट पर हाथ घुमाने से भी पाचनतंत्र ठीक रहता है 

(6) बार-बार मुँह चलाना (खाना) ठीक नहीं, दिन में दो बार भोजन करें । और वह सात्त्विक व सुपाच्य हो । भोजन शांत व प्रसन्न होकर करें । भगवन्नाम से आप्लावित (तर, नम) निगाह डालकर भोजन को प्रसाद बना के खायें 

(7) 50 साल के बाद स्वास्थ्य जरा नपा-तुला रहता है, रोगप्रतिकारक शक्ति दबी रहती है । इस समय नमक, शक्कर और घी-तेल पाचन की स्थिति पर ध्यान देते हुए नपा-तुला खायें, थोड़ा भी ज्यादा खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है 

(8) कइयों की आँखें जलती होंगी, लाल हो जाती होंगी । कइयों को सिरदर्द होता होगा । तो एक-एक घूँट पानी मुँह में लेकर अंदर गरारा (कुल्ला) करता रहे और चाँदी का बर्तन मिले अथवा जो भी मिल जाय, उसमें पानी भर के आँख डुबा के पटपटाता जाय । मुँह में दुबारा पानी भर के फिर दूसरी आँख डुबा के ऐसा करे । फिर इसे कुछ बार दोहराये । इससे आँखों व सिर की गर्मी निकलेगी । सिरदर्द और आँखों की जलन में आराम होगा व नेत्रज्योति में वृद्धि होगी 

(9) अगर स्वस्थ रहना है और सात्त्विक सुख लेना है तो सूर्योदय के पहले उठना न भूलें । आरोग्य और प्रसन्नता की कुंजी है सुबह-सुबह वायु-सेवन करना । सूरज की किरणें नहीं निकली हों और चन्द्रमा की किरणें शांत हो गयी हों उस समय वातावरण में सात्त्विकता का प्रभाव होता है । वैज्ञानिक भाषा में कहें तो इस समय ओजोन वायु खूब मात्रा में होती है और वातावरण में ऋणायनों का प्रमाण अधिक होता है । वह स्वास्थ्यप्रद होती है । सुबह के समय की जो हवा है वह मरीज को भी थोड़ी सांत्वना देती है ।

Ref-ISSUE308-AUGUST-2018