Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

पित्तशामक व पोषक तत्त्वों से भरपूर फल : संतरा

शरद ऋतु पित्त की ऋतु है । सेवफल, नारंगी (संतरा) पित्तशामक होते हैं । संतरे में विटामिन ‘ए’, ‘बी’ आदि तो होते हैं लेकिन विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में होता है । मीठा संतरा खाने से आँतें साफ होती हैं, वायु-संबंधी दोष ठीक होते हैं, हृदयरोग, नेत्र के रोग, आंतरिक गर्मी, पेट के विकार, पित्तजन्य विकार मिटते हैं । गैस की तकलीफ व दुर्बलता मिटती है और खून की कमी की पूर्ति होती है ।
प्रतिदिन 1-2 संतरे का सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा है और बुढ़ापे को दूर रखने में भी हितकारी है । कब्जियत की तकलीफ हो तो 2 संतरों के रस में थोड़ा पानी डाल के सुबह खाली पेट पी लें तो पेट साफ आने लगेगा । संतरे का रस गर्भवती महिला को बल देता है और बालकों को भी स्वास्थ्य व सुंदरता देता है । कमजोर व्यक्ति को दिन में 2-3 बार संतरे का थोड़ा-थोड़ा रस दिया जाय तो इससे उसका शरीर पुष्ट होता है ।
संतरे के रस में एक-एक चुटकी सोंठ व काला नमक मिलाकर लेने से बदहजमी और अफरा ठीक होता है, भूख खुल के लगती है । लेकिन भोजन के तुरंत बाद संतरा कभी न खायें । जोड़ों के दर्द, कफ प्रकृति, दमा वाले व्यक्ति संतरा नहीं खायें तो अच्छा है । संतरे के छिलके पीसकर उसका घोल बना के चेहरे पर लगाने से मुँहासे ठीक हो जाते हैं, दाग मिटते हैं, रंग निखरता है ।