Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

ब्रह्मवृक्ष से उठायें स्वास्थ्य-लाभ

पलाश के वृक्ष को ब्रह्मवृक्ष भी कहा जाता है ।
कफ व पित्त के रोग, चर्मरोग, जलन, अधिक प्यास लगना, रक्त-विकार, अधिक पसीना आना तथा मूत्रकृच्छ (रुक-रुककर पेशाब आना) आदि रोग - इन सभीमें पलाश के फूल आशीर्वादरूप हैं अर्थात् ये इन रोगों को भगाते हैं । ये मानसिक शक्ति व इच्छाशक्ति वर्धक हैं तथा पेशाब भी साफ लाते हैं ।
संक्रामक बीमारियों से सुरक्षा : पलाश के फूलों के रंग से कपड़ा भिगोकर शरीर पर डालने से स्नायुमंडल प्रभावशाली होता है, संक्रामक बीमारियों से रक्षा होती है । जब से पलाश के फूलों से होली खेलना शुरू किया तब से हमारे कई साधकों से संक्रामक बीमारियाँ दूर भाग गयीं, करोड़ों-करोड़ों लोगों को फायदा हुआ ।
नाक से या पेशाब में खून आना अथवा आँखें जलना : 10 ग्राम पलाश-फूल रात को पानी में भिगो दें और सुबह छान के उस पानी में थोड़ी मिश्री डालकर 50 मि.ली. पियें । गर्मी-संबंधी बीमारियों को भगाने के लिए यह रामबाण उपाय है ।
पलाश के अन्य अंगों से स्वास्थ्य-लाभ
कृमि में : पलाश के बीज का 2 से 4 ग्राम चूर्ण दिन में 2 बार छाछ से 3 दिन तक लें । चौथे दिन 1-2 चम्मच अरंडी का तेल (आवश्यकता-अनुसार मात्रा बढ़ा सकते हैं) लें, इससे कृमि मरकर निकल जाते हैं ।
मिर्गी व हिस्टीरिया में : पलाश के बीज को 5-6 घंटे तक पानी में भिगो दें, फिर पीस के रस निकालकर जरा-सा रस रोगी की नाक में डालें अथवा पलाश की जड़ का रस नाक में टपकायें तो मिर्गी, हिस्टीरिया आदि बीमारियों में लाभ होता है ।
टूटी हड्डियों को जोड़ने में : अस्थियों को जोड़ने में पलाश का गोंद बहुत काम करता है । फ्रैक्चर-वैक्चर हो जाय तो पलाश के 1 ग्राम गोंद को दूध के साथ सेवन करें ।
वीर्यवृद्धि हेतु : पलाश का 1 ग्राम गोंद रगड़ के दूध में सुबह खाली पेट दो तो नामर्द भी मर्द होने लगेगा ऐसा लिखा है ।
कफ और पित्त जन्य रोगों में : पलाश के फूलों व कोमल पत्तों की सब्जी बनाकर खायें तो फायदा होता है । बवासीरवाले लोग पलाश के पत्तों की सब्जी दही के साथ खायें ।
(संदर्भ : ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ 31)
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प्राकृतिक रंग कैसे बनायें ?
* केसरिया रंग : पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें । सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर, उसे ठंडा करके होली का आनंद उठायें । यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है । साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है ।
* सूखा हरा रंग : केवल मेंहदी चूर्ण या उसे समान मात्रा में आटे में मिलाकर बनाये गये मिश्रण का प्रयोग करें ।
* गीला लाल रंग : दो चम्मच मेंहदी चूर्ण को एक लीटर पानी में अच्छी तरह घोल लें ।
* सूखा पीला रंग : 4 चम्मच बेसन में 2 चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें । सुगंधयुक्त कस्तूरी हल्दी का भी उपयोग किया जा सकता है और बेसन की जगह गेहूँ का आटा, चावल का आटा, आरारोट का चूर्ण, मुलतानी मिट्टी आदि उपयोग में ले सकते हैं ।
* गीला पीला रंग : 2 चम्मच हल्दी चूर्ण 2 लीटर पानी में डालकर अच्छी तरह उबालें ।
* काला रंग : आँवला चूर्ण लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें ।
* गीला लाल रंग : पान पर लगाया जानेवाला एक चुटकी चूना और दो चम्मच हल्दी को आधा प्याला पानी में मिला लें । कम-से-कम 10 लीटर पानी में घोलने के बाद ही उपयोग करें ।
(संदर्भ : ऋषि प्रसाद, मार्च 2014, पृष्ठ 12)