चना पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है । इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन एवं फोलिक एसिड पाया जाता है । साथ में यह रेशे, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, लौह तत्त्व, फास्फोरस आदि का भी अच्छा स्रोत है । अतः यह शारीरिक शक्ति एवं मजबूती बढ़ाने में अत्यंत सहायक है । यह हृदय एवं रक्तवाहिनियों से संबंधित रोगों, खून में कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना, मधुमेह (diabetes), मोटापा, कैंसर आदि रोगों में लाभदायी है ।
आयुर्वेद के अनुसार चना कषाय रसयुक्त, शीतल, रुक्ष, पचने में भारी, वातकारक, कफ-पित्तशामक तथा रक्तविकार एवं ज्वर का नाशक है ।
चने की विभिन्न किस्मों के गुण
कच्चे हरे चने : ताजे हरे चने खाने से शरीर में शक्ति बढ़ती है । ये स्तनपान करानेवाली माताओं में दूध की मात्रा बढ़ाते हैं ।
अंकुरित चने : ये बलदायक, वजन बढ़ानेवाले, फेफड़े मजबूत करनेवाले तथा रक्त की शुद्धि, वृद्धि व हृदयरोगों को दूर करनेवाले होते हैं ।
उबाले हुए चने : ये कफ-पित्तशामक होते हैं ।
चनों के औषधीय गुण
* अंकुरित काले चने (देशी चने) यदि एक कप करेले के रस के साथ खाये जायें तो यह मिश्रण मधुमेह के इलाज में प्रभावशाली भूमिका निभाता है ।
* सर्दियों में चने के आटे (बेसन) के लड्डू बल व पुष्टिदायी व्यंजन है ।
* करीब 10 दिनों तक 50 ग्राम भुने हुए चने खा के ऊपर से थोड़ा पुराना गुड़ खा लेने से बहुमूत्रता में लाभ होता है ।
* चने का आटा पानी में मिला के शरीर पर मर्दन करके स्नान करने से पसीने की दुर्गंध व खुजली मिटती है और त्वचा साफ होती है तथा मलाई में मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम व कांतियुक्तहोती है ।
सावधानी : चने का अत्यधिक सेवन पेट में वायु उत्पन्न करता है । चने रुक्ष होने से मलावरोध करते हैं । अतः शाम के भोजन में चने का उपयोग नहीं करना चाहिए एवं इनका अत्यधिक सेवन नहीं करना चाहिए ।