Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

ब्रह्मचर्य का अर्थ

ब्रह्मचर्य का अर्थ है सभी इन्द्रियों पर काबू पाना ।

 

ब्रह्मचर्य में दो बातें होती हैं:

(1) ध्येय उत्तम होना

(2) इन्द्रियों और मन पर अपना नियंत्रण होना ।

 

ब्रह्मचर्य में मूल बात यह है कि मन और इन्द्रियों को उचित दिशा में ले जाना है । ब्रह्मचर्य बड़ा गुण है । वह ऐसा गुण है, जिससे मनुष्य को नित्य मदद मिलती है और जीवन के सब प्रकार के खतरों में सहायता मिलती है ।

ब्रह्मचर्य आध्यात्मिक जीवन का आधार है । आज जो आध्यात्मिक जीवन गिर गया है, उसकी स्थापना करनी है । उसमें ब्रह्मचर्य एक बहुत सहायक साधन है और बड़ा कल्याणकारी है । अगर ठीक ढंग से सोचें तो गृहस्थाश्रम भी ब्रह्मचर्य के लिए ही है । शास्त्रकारों के बताये अनुसार ही अगर वर्तन किया जाय तो गृहस्थाश्रम भी ब्रह्मचर्य की साधना का एक प्रकार हो जाता है ।

पृथ्वी पर पाप का भार होता है, संख्या का नहीं । संतान पाप से बढ़ सकती है, पुण्य से भी बढ़ सकती है । संतान पाप से घट सकती है, पुण्य से भी घट सकती है । पुण्यमार्ग से संतान बढ़ेगी या घटेगी तो नुकसान नहीं होगा । पापमार्ग से संतान बढ़ेगी तो पृथ्वी पर भार होगा और पापमार्ग से संतान घटेगी तो भी नुकसान होगा । संतान-निरोध के कृत्रिम उपायों के अवलम्बन से सिर्फ संतान ही नहीं रुकेगी, बुद्धिमत्ता भी रुकेगी । यह जो सर्जनशक्ति (उीशरींर्ळींश एपशीसू) है, जिसे हम ‘वीर्य’ कहते हैं, मनुष्य उस निर्माणशक्ति का दुरुपयोग करता है । उस शक्ति का दूसरी तरफ जो उपयोग हो सकता था, उसे विषय-उपभोग में लगा दिया । विषय-वासना पर जो अंकुश रहता था, वह नहीं रहा । संतान उत्पन्न न हो, ऐसी व्यवस्था करके पति-पत्नी विषय-वासना में व्यस्त रहेंगे तो उनके दिमाग का कोई संतुलन नहीं रहेगा । ऐसी हालत में देश तेजोहीन बनेगा । ज्ञानतंतु भी क्षीण होंगे, प्रभा भी कम होगी, तेजस्विता भी कम होगी । शारीरिक (एड्स और अन्य यौन संक्रमित रोग से ग्रस्त) और मानसिक रोगी बढ़ेंगे, अपराध बढ़ेंगे, सामाजिक समस्याएँ बढ़ेंगी और चरित्रहीनता बढ़ेगी ।

आज मानव-समाज में ‘सेक्स’ का ऊधम मचाया जा रहा है । मुझे इससे युद्ध से भी ज्यादा भय मालूम होता है । अहिंसा को हिंसा का जितना भय है, उससे ज्यादा काम-वासना का है । कमजोरों की जो संतानें पैदा होती हैं, वे भी निर्वीर्य या निकम्मी होती हैं । जानवरों में भी यह देखा गया है । शेर के बच्चे कम होते हैं, बकरी के ज्यादा । मजबूत जानवरों में विषय-वासना कम होती है, कमजोरों में ज्यादा । इसीलिए ऐसा वातावरण निर्मित किया जाय जो संयम के अनुकूल हो । समाज में पुरुषार्थ बढ़ायें, साहित्य सुधारें और गंदा साहित्य, गंदे सिनेमा रोकें ।