वीर्य के एक-एक अणु में महान शक्तियाँ छिपी हैं। इसीके द्वारा आद्य शंकराचार्यजी, महावीर स्वामी, कबीरजी, नानकजी, लीलाशाहजी बापू जैसे महापुरुष धरती पर अवतीर्ण हुए हैं । बड़े-बड़े वीर, योद्धा, वैज्ञानिक, साहित्यकार - ये सब वीर्य की एक बूँद में छिपे थे और अभी आगे भी पैदा होते रहेंगे । इतने बहुमूल्य वीर्य का सदुपयोग जो व्यक्ति नहीं कर पाता, वह अपना पतन आप आमंत्रित करता है ।
वीर्यं वै भर्गः । ‘वीर्य ही तेज है, आभा है, प्रकाश है ।’ (शतपथ ब्राह्मण)
जीवन को ऊर्ध्वगामी बनानेवाली ऐसी बहुमूल्य वीर्यशक्ति को जिसने भी खोया, उसको कितनी हानि उठानी पड़ी, यह कुछ उदाहरणों के द्वारा हम समझ सकते हैं ।
भीष्म पितामह और वीर अभिमन्यु
‘महाभारत’ में ब्रह्मचर्य से संबंधित दो प्रसंग आते हैं : एक भीष्म पितामह का और दूसरा वीर अभिमन्यु का । भीष्म पितामह बालब्रह्मचारी थे, इसलिए उनमें अथाह सामर्थ्य था । भगवान श्रीकृष्ण का यह व्रत था कि ‘मैं युद्ध में शस्त्र नहीं उठाऊँगा ।’ किंतु यह भीष्म की ब्रह्मचर्यशक्ति का ही चमत्कार था कि उन्होंने श्रीकृष्ण को अपना व्रत भंग करने के लिए मजबूर कर दिया । उन्होंने अर्जुन पर ऐसी बाणवर्षा की कि दिव्यास्त्रों से सुसज्जित अर्जुन जैसा धुरंधर धनुर्धारी भी उसका प्रतिकार करने में असमर्थ हो गया, जिससे उसकी रक्षार्थ भगवान श्रीकृष्ण को रथ का पहिया लेकर भीष्म की ओर दौड़ना पड़ा ।
यह ब्रह्मचर्य का ही प्रताप था कि भीष्म मौत पर भी विजय प्राप्त कर सके । उन्होंने यह स्वयं ही तय किया कि उन्हें कब शरीर छोड़ना हैŸ। अन्यथा शरीर में प्राणों का टिके रहना असम्भव था परंतु भीष्म की आज्ञा के बिना मौत भी उनसे प्राण कैसे छीन सकती थी ! भीष्म ने स्वेच्छा से शुभ मुहूर्त में अपना शरीर छोड़ा ।
दूसरी ओर अभिमन्यु का प्रसंग आता है । महाभारत के युद्ध में अर्जुन का वीर पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह का भेदन करने के लिए अकेला ही निकल पड़ा था । भीम भी पीछे रह गया था । उसने जो शौर्य दिखाया वह प्रशंसनीय था । बड़े-बड़े महारथियों से घिरे होने पर भी वह रथ का पहिया लेकर अकेला युद्ध करता रहा परंतु आखिर में मारा गया । इसका कारण यह था कि युद्ध में जाने से पूर्व वह अपना ब्रह्मचर्य खंडित कर चुका थाŸ। वह उत्तरा के गर्भ में पांडव वंश का बीज डालकर आया था । मात्र इतनी छोटी-सी भूल के कारण वह पितामह भीष्म की तरह अपनी मृत्यु का आप मालिक नहीं बन सका ।