तेल को धूप में रखकर उसमें सूर्य-किरणों का प्रभाव लाया जा सकता है । जिस रंग में तेल तैयार करना चाहें उस रंग की साफ काँच की बोतल में तीन भाग तक तेल भर दें व एक भाग खाली रखकर ढक्कन लगा दें और ऐसी जगह रखें जहाँ दिनभर उस पर धूप पड़ती रहे । बोतल को लकड़ी के पटिये पर रखें एवं इसे रोज हिलाते रहें । धूप समाप्त होने से पहले ही बोतल उठाकर रख लें । बोतल को कम-से-कम 40 दिन तक धूप में रखें, उसके बाद ही उस तेल का मालिश हेतु प्रयोग करें । तेल जिस रंग की बोतल में भरकर धूप में रखा गया हो, उसी रंगवाली बोतल में रखा रहने दें । यदि किसी रंग की शुद्ध बोतल न मिल सके तो पारदर्शी काँच की बोतल पर इच्छित रंग का सेलोफेन कागज लपेटकर भी काम चलाया जा सकता है ।
ऋतु और शरीर की स्थिति के अनुसार तेल का चुनाव कर नियमित रूप से शरीर की मालिश करनी चाहिए । साधारण मालिश के लिए सरसों, नारियल व तिल का तेल उत्तम रहता है । कमजोर रोगियों के लिए जैतून का तेल विशेष लाभ देता है ।
कमर व गर्दन का दर्द, मोच, लकवा, जोड़ों का दर्द, गठिया, वातव्याधि, सायटिका आदि रोगों में लाल रंग की बोतलवाले नारियल या तिल के तेल से मालिश करें तथा 20 से 60 मिनट तक रोगग्रस्त अंग की धूप में सिंकाई करें । यह तेल बहुत ही गर्म प्रकृति का हो जाता है । जहाँ शरीर में गर्मी और चेतनता देने की आवश्यकता हो, वहाँ इस तेल से मालिश करनी चाहिए । ग्रीष्म ऋतु में गर्म प्रकृति के लोगों के लिए इसका उपयोग हितावह नहीं है ।
हलके नीले या नीले रंग की बोतल में सरसों या नारियल का तेल तैयार करने से वह ठंडी प्रकृति का हो जाता है । शरीर में बढ़ी हुई गर्मी, गर्मी के दाने, कील-मुँहासे, घमौरियाँ, बवासीर, स्नायविक संस्थान के दौर्बल्य, शिथिलता, सिरदर्द, बाल झड़ना, रूसी होना आदि में यह लाभदायक है । यह मस्तिष्क को ठंडक देता है, दिमागी कार्य करनेवालों के लिए यह टॉनिक का काम करता है ।
चर्मरोग, खुजली आदि के लिए अलसी का तेल या हरे रंग की बोतलवाला नारियल का तेल लाभप्रद होता है । यह नारियल-तेल लघु मस्तिष्क पर (सिर के पीछे, नीचे) लगाने से स्वप्नदोष, सूजाक (गोनोरिया), प्रदररोग आदि में शीघ्र लाभ होता है । सिर में खुजली, असमय सफेद बाल, उपदंश (Syphilis) आदि में भी यह उपयोगी है ।
सिरदर्द के लिए बादाम के तेल का प्रयोग करें । कमजोर और सूखा रोग से ग्रस्त बच्चों के शरीर पर धूप में बैठकर जैतून के तेल से मालिश करना बहुत गुणकारी होता है । वात आदि व्याधियों में तिल का तेल लाभकारी है । आश्रम-निर्मित मालिश तेल जोड़ों के दर्द के लिए अत्यंत उपयुक्त है । अंदरूनी चोट, पैर में मोच आना आदि में हलके हाथ से मालिश करके गर्म कपड़े से सेंकने पर शीघ्र लाभ होता है ।