Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

स्वास्थ्यरक्षक पुष्टिवर्धक मालिश

मालिश हमारे स्वास्थ्य व सौंदर्य में वृद्धि करती है, साथ में यह अनेक रोगों का सफल उपचार भी है । शीतकाल में मालिश विशेष लाभकारी है ।

नियमित मालिश के लाभ

(१) त्वचा निरोग, झुर्रियों से रहित, स्निग्ध, कांतिपूर्ण और स्वच्छ रहती है । सभी अवयवों में लचीलापन रहता है और शरीर का विकास एवं सुरक्षा भली प्रकार होते हैं ।

(२) शरीर में स्फूर्ति और शक्ति बनी रहती है, थकावट दूर होती है ।

(३) पाचक अंगों को शक्ति व ओज मिलता है । यकृत, छोटी आँत आदि ठीक से अपना कार्य करते रहते हैं और पेट ठीक से साफ होता है ।

(४) शरीर दुबला हो तो पुष्ट व सुडौल होता है । यदि मोटा हो तो मोटापा कम होता है ।

(५) अनिद्रा, शारीरिक दर्द, हाथ-पैरों का कम्पन और वातरोग आदि व्याधियों में लाभ होता है ।

मालिश के द्वारा रोग-निवारण

मालिश द्वारा शरीर का रक्त-प्रवाह बेहतर हो जाता है । यह शरीर के रोगों की निवृत्ति में सहायक होती है । मालिश से शरीर के चयापचयजन्य त्याज्य द्रव्य तथा विषाक्त द्रव्य पसीने, पेशाब, मल, श्वास आदि के द्वारा बाहर निकल जाते हैं । यह शरीर की कार्यप्रणाली को सक्रिय बनाती है ।

मांसपेशियों को अपना कार्य भलीभाँति करने के लिए शक्ति प्राप्त होती है । जोड़ लचीले और स्नायु दृढ़ हो जाते हैं । रक्त का एक स्थान पर जमाव व चिपकाव दूर होता है । स्नायु-जाल को बहुत लाभ होता है ।

भिन्न-भिन्न रोगों में मालिश का प्रयोग अलग-अलग तरीकों से शरीर के विभिन्न अंगों पर किया जाता है । उचित मालिश द्वारा जोड़ों का दर्द, सिरदर्द, मोच और किसी अंग की पीड़ा बड़ी सरलता से दूर की जा सकती है । लकवे की बीमारी में भी यह बहुत लाभ करती है ।

मालिश का तेल : मालिश के लिए काले तिल का तेल उत्तम है ।

मालिश में ध्यान रखने योग्य बातें

* जमीन पर चटाई बिछाकर बैठ के मालिश करें, खड़े-खड़े या चलते-फिरते नहीं ।

* मालिश करने के लिए हाथ नीचे से ऊपर को चलायें । इसका तात्पर्य यह है कि हृदय की तरफ रक्त का प्रवाह हो ऐसा प्रयास करना ।

* मालिश के समय पेट खाली होना चाहिए । इसलिए सुबह शौच के बाद और स्नान से पहले मालिश करना सर्वश्रेष्ठ होता है । मालिश के २०-३० मिनट बाद सप्तधान्य उबटन या बेसन अथवा मुलतानी मिट्टी (शीत ऋतु के अलावा) लगाकर गुनगुने पानी से स्नान करें । स्नान कर तौलिये से खूब रगड़-रगड़ के शरीर को पोंछ लें ।

* प्रतिदिन पूरे शरीर की मालिश सम्भव न हो तो नियमित सिर व पैर के तलवों की मालिश करें व नाभि में तेल डालें । २-३ दिन में कान में शुद्ध सरसों या तिल का तेल डालना चाहिए ।

* मालिश धीरे-धीरे और हलके दबाव के साथ करनी चाहिए । मालिश करते समय ऐसी मनोभावना बनायें कि उक्त अंग को बल मिल रहा है, इससे विशेष लाभ होता है ।

सावधानियाँ

* भोजन के तुरंत बाद कभी भी मालिश नहीं करनी चाहिए । मालिश शीघ्रता से न करें अन्यथा यह थकान पैदा करती है ।

* मालिश के बाद ठंडी हवा में न घूमें 

* बुखार, कब्ज, अजीर्ण, आमदोष, तरुण ज्वर, कफ से पीड़ित तथा उपवास या अधिक रात्रि तक जागरण किये हुए एवं बहुत थके हुए व्यक्ति को तेल-मालिश नहीं करनी चाहिए ।

* रोग दूर करने के लिए किसी अंग की मालिश करनी हो तो मालिश के जानकार, वैद्य आदि से समझकर ही मालिश करनी चाहिए ।