Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

गुणों व खनिजों का खजाना: चौलाई

हरी सब्जियों में उच्च स्थान प्राप्त करनेवाली चौलाई एक श्रेष्ठ पथ्यकर तथा अनेक खनिजों का खजाना है । आयुर्वेद के ‘भावप्रकाश निघंटु’ के अनुसार यह हलकी, शीतल, रुक्ष, रुचिकारक, अग्निदीपक एवं मूत्र व मल को निकालनेवाली तथा पित्त, कफ, रक्तविकार व विष को दूर करनेवाली होती है ।

चौलाई की मुख्य दो किस्में होती हैं - लाल और हरी । लाल चौलाई ज्यादा गुणकारी होती है ।

चौलाई में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह, विटामिन ‘ए’ व ‘सी’ प्रचुर मात्रा में होते हैं । गर्भिणी तथा स्तनपान करानेवाली माताओं को इसका सेवन अवश्य करना चाहिए । इसमें रेशे होने के कारण यह आँतों में चिपके हुए मल को अलग करती है । पुराने कब्ज में भी लाभदायी है । चौलाई रक्त शुद्ध करनेवाली, अरुचि को दूर कर पाचनशक्ति को बढ़ानेवाली, त्वचा के विकार व गर्मी के रोगों में बहुत गुणकारी है ।

यह नेत्रों के लिए हितकारी, मातृदुग्धवर्धक एवं रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर आदि स्त्रीरोगों में लाभकारी है । चौलाई की सब्जी खून की कमी, शीतपित्त, रक्तपित्त, बवासीर, पुराना बुखार, संग्रहणी, गठिया, उच्च रक्तचाप, हृदयरोगों तथा बाल गिरने आदि बीमारियों में भी लाभदायक है ।

चौलाई की भाजी को केवल उबालकर या घी का बघार दे के तैयार करें ।

* शरीर की गर्मी व जलन : चौलाई के 50 मि.ली. रस में मिश्री मिलाकर पीने से खुजली और गर्मी दूर होती है । हाथ-पैर के तलवों व पेशाब की जलन में लाभ होता है ।

* रक्तपित्त : चौलाई का रस शहद के साथ सुबह-शाम पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है तथा नाक, गुदा आदि स्थानों से निकलनेवाला खून बंद हो जाता है ।

* नेत्ररोग : आँखों से कम दिखना, आँखें लाल हो जाना, जलन, रात्रि को न दिखना आदि तकलीफों में चौलाई का रस 50-60 मि.ली. प्रतिदिन दें अथवा चौलाई को सब्जी के रूप में उपयोग करें ।

* पित्त-विकृति : पित्त-विकृति में चौलाई की सब्जी खाते रहने से बहुत लाभ होता है ।