जो पदार्थ रस-रक्तादि धातुओं के विरुद्ध गुणधर्मवाले व वात-पित्त-कफ इन त्रिदोषों को प्रकुपित करनेवाले हैं, उनके सेवन से रोगों की उत्पत्ति होती है ।
आयुर्वेद में आहार की विरुद्धता के 18 प्रकार बताये गये हैं । जैसे घी खाने के बाद ठंडा पानी पीना परिहार-विरुद्ध है । खाते समय भोजन पर ध्यान नहीं देना (टीवी देखना, मोबाइल का प्रयोग करना आदि) विधि-विरुद्ध है । काँसे के पात्र में दस दिन रखा हुआ घी संस्कार-विरुद्ध है, रात में सत्तू का सेवन काल-विरुद्ध है । शीतल जल के साथ मूँगफली, घी, तेल, अमरूद, जामुन, खीरा, ककड़ी, गर्म दूध या गर्म पदार्थ; खरबूजे के साथ लहसुन, मूली के पत्ते, दूध, दही; तरबूज के साथ पुदीना, शीतल जल; चावल के साथ सिरका आदि विरुद्ध आहार हैं । अन्य विरुद्ध (अहितकारी) संयोगों की जानकारी हेतु पढ़ें ऋषि प्रसाद, अक्टूबर 2015 में पृष्ठ 30 पर ‘पथ्य-अपथ्य विवेक’ ।
आम तौर पर प्रचलित विरुद्धाहार
(1) आम तौर पर मरीजों को खाने के लिए मूँग, नारियल-पानी, दूध लेने की सूचना दी जाती है । ये तीनों उपयोगी पदार्थ परस्पर विरुद्ध हैं । इनका एक साथ उपयोग नहीं करना चाहिए ।
(2) दूध और केला साथ में लेने से बहुत अधिक मात्रा में कफ प्रकोप होता है ।
(3) दूध के साथ मूँग और नमक विरुद्ध हैं । इसलिए मूँग-चावल की खिचड़ी और दूध को साथ में नहीं लेना चाहिए । दूध के स्थान पर तरल सब्जी आदि का उपयोग कर सकते हैं ।
(4) दूध के साथ गुड़ विरुद्ध आहार है, मिश्री ले सकते हैं ।
(5) दूध और फलों के संयोग से बना मिल्कशेक शरीर के लिए हानिकारक है ।
(6) दूध डालकर बनाया गया फलों का सलाद विरुद्धाहार है । विरुद्ध न हो इस प्रकार फलों का सलाद बनाने के लिए नारियल को पीसकर उसका दूध बना लें, उसमें सभी फलों को डाल सकते हैं ।
(7) गर्म भोजन के साथ खूब ठंडा आम का रस विरुद्ध है । रस का तापमान कमरे के तापमान जितना होना चाहिए ।
(8) नॉन-स्टीकी बर्तन के ऊपर की परत में कृत्रिम प्लास्टिक जैसे तत्त्व का प्रयोग होता है । उसको काम में लेने से यह तत्त्व आहार में मिलकर शरीर में जा के कैंसर जैसे गम्भीर रोग उत्पन्न करता है । लोहे अथवा स्टील के बर्तनों का उपयोग कर सकते हैं ।
(9) बच्चों को दूध में मिला के दिये जानेवाले चॉकलेट आदि के पाउडर कृत्रिम तरीके से बनाये जाते हैं । बाजारू तथाकथित शक्तिवर्धक पदार्थों के पाउडर की जगह मिश्री व इलायची मिला के बच्चों को पिलायें । सर्दियों में काजू, बादाम, अखरोट, पिस्ता का अत्यंत बारीक चूर्ण भी दूध में डाल सकते हैं ।
(10) पदार्थ को तलने से पोषक तत्त्व नष्ट होते हैं । बहुत कम मात्रा में छोटे पात्र में तेल ले के इस प्रकार पदार्थ को तलें जिससे तेल बचे नहीं । तलने के बाद बचे हुए तेल का उपयोग दुबारा तलने के लिए नहीं करना चाहिए ।
(11) चीनी सफेद जहर है, अतः हमेशा मिश्री का उपयोग करना चाहिए । वह भी सीमित मात्रा में ।
(12) आहार पकाकर फ्रीज में लम्बे समय तक संग्रह करने से, जरूरत पड़ने पर माइक्रोवेव ओवन में गर्म करके उपयोग करने से, सुबह का भोजन शाम को और शाम का दूसरे दिन सुबह लेने से उसके पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, रोगकारकता बढ़ती है ।
(13) मैदा और प्राणिज वसा के संयोग से बननेवाले बेकरी के पदार्थ - ब्रेड, बिस्कुट, पाव, नानखताई, पिज्जा-बर्गर आदि तथा सेकरीन से बनाये गये खाद्य पदार्थ, आइस्क्रीम, शरबत व मिठाइयाँ एवं बेकिंग पाउडर डालकर बनाये जानेवाले खाद्य पदार्थ जैसे नूडल्स आदि अत्यंत हानिकारक हैं ।
(14) प्लास्टिक की पैकिंगवाले खाद्य पदार्थों में गर्मी के कारण प्लास्टिक के रासायनिक कण (केमिकल पार्टीकल्स) मिल जाते हैं, जिनसे कैंसर हो सकता है ।
(15) खाद्य पदार्थ लम्बे समय तक खराब न हों इसके लिए उनमें मिलाये जानेवाले सभी पदार्थ (िीशीर्शीींरींर्ळींशी) विविध कृत्रिम रसायनों से बनाये जाते हैं । ये सब हानिकारक तत्त्व हैं । जब हम डिब्बाबंद भोजन (पैक्ड फूड) खाते हैं, तब तक उसके उपयोगी तत्त्व नष्ट हो गये होते हैं ।
(16) मिठाइयों को चमकाने के लिए लगायी जानेवाली चाँदी की परत बनाने में पशुओं की आँतों का प्रयोग किया जाता है । यह बहुत हानिकारक है ।
वर्तमान समय में प्रचलित ऊपर बताये गये आहार विरुद्धाहार से भी अधिक नुकसानकारक और धीमे जहर के समान होने के कारण उन्हें ‘विषमय आहार’ कहना चाहिए ।
वर्तमान समय में बालवय में मोटापा, युवावय में हृदयाघात (हार्ट-अटैक) में वृद्धि, मधुमेह (डायबिटीज) तथा कैंसर जैसी घातक बीमारियों के आँकड़े चिंताजनक हैं । इनके कारण हैं ये विषमय आहार । वैज्ञानिक शोधों द्वारा यह बात सिद्ध हो गयी है । इसलिए आहार तथा जीवनशैली में परिवर्तन करना जरूरी है ।