ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड (२७.२९-३४) में आता है :
* प्रतिपदा को कुष्मांड (कुम्हड़ा, पेठा) न खायें क्योंकि यह धन का नाश करनेवाला है ।
* द्वितीया को बृहती (वनभाँटा, छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है ।
* तृतीया को परवल खाना शत्रुवृद्धि करता है ।
* चतुर्थी को मूली खाने से धन-नाश होता है ।
* पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है ।
* षष्ठी को नीम-भक्षण (पत्ती, फल खाने या दातुन मुँह में डालने) से नीच योनियों की प्राप्ति होती है ।
* सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ते हैं तथा शरीर का नाश होता है ।
* अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है ।
* नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है ।
* एकादशी को शिम्बी (सेम), द्वादशी को पूतिका (पोई) तथा त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है ।
* अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी व अष्टमी, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री-सहवास एवं तिल का तेल खाना व लगाना निषिद्ध है ।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड : २७.३७-३८)
इससे स्वभाव क्रोधी होता है और बीमारी जल्दी आती है ।
* रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग की सब्जी नहीं खानी चाहिए ।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंड : ७५.६१)
ये खाने व लाल बल्ब आदि से घर में झग‹डे होते हैं एवं स्वभाव में क्रोध व काम पैदा होता है ।
* सूर्यास्त के बाद कोई भी तिलयुक्त पदार्थ नहीं खाना चाहिए । (मनुस्मृति : ४.७५)
* सावन में साग और भादों में दही का सेवन वर्जित है । कहावत भी है :
भादों की दही भूतों को, कार्तिक की दही पूतों को ।
Ref: ऋषि प्रसाद अंक - 260