तप कई प्रकार के होते हैं । जैसे शारीरिक, मानसिक, वाचिक आदि । ऋषिगण कहते हैं कि मन की एकाग्रता सब तपों में श्रेष्ठ तप है ।
जिसके पास एकाग्रता के तप ता खजाना है, वह योगी रिद्धि-सिद्धि एवं आत्मसिद्धि दोनों को प्राप्त कर सकता है । जो भी अपने महान कर्मों के द्वारा समाज में प्रसिद्ध हुए हैं, उनके जीवन में भी जान-अनजाने एकाग्रता की साधना हुई है । विज्ञान के बडे-बडे आविष्कार भी इस एकाग्रता के तप के ही फल हैं ।
एकाग्रता की साधना को परिपक्व बनाने के लिए त्राटक एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । त्राटक का अर्थ है किसी निश्चित आसन पर बैठकर किसी निश्चित वस्तु का एकटक देखना ।
त्राटक कई प्रकार के होते हैं । उनमें बिन्दु, त्राटक, मूर्ति त्राटक एवं दीपज्योति त्राटक प्रमुख हैं । इनके अलवा प्रतिबिम्ब त्राटक, सूर्य त्राटक, तारा त्राटक, चन्द्र त्राटक आदि त्राटकों का वर्णन भी शास्त्रों में आता है । यहाँ पर प्रमुख तीन त्राटकों का ही विवरण दिया जा रहा है ।
विधिः किसी भी प्रकार के त्राटन के लिए शांत स्थान होना आवश्यक है, ताकि त्राटक करनेवाले साधक की साधना में किसी प्रकार का विक्षेप न हो ।
भूमि पर स्वच्छ, विद्युत-कुचालक आसन अथवा कम्बल बिछाकर उस पर सुखासन, पद्मासन अथवा सिद्धासन में कमर सीधी करके बैठ जायें । अब भूमि से अपने सिर तक की ऊँचाई माप लें । जिस वस्तु पर आप त्राटक कर रहे हों, उसे भी भूमी से उतनी ही ऊँचाई तथा स्वयं से भी उस वस्तु की उतनी ही दूरी रखें ।
बिन्दु त्राटक
8 से 10 इंच की लम्बाई व चौड़ाईवाले किसी स्वच्छ कागज पर लाल रंग से स्वस्तिक का चित्र बना लें । जिस बिन्दु पर स्वस्तिक की चारों भुजाएँ मिलती हैं, वहाँ पर सलाई से काले रंग का एक बिन्दु बना लें ।
अब उस कागज को अपने साधना-कक्ष में उपरोक्त दूरी के अनुसार स्थापित कर दें । प्रतिदिन एक निश्चित समय व स्थान पर उस काले बिन्दु पर त्राटक करें । त्राटक करते समय आँखों की पुतलियाँ न हिलें तथा न ही पलकें गिरें, इस बात का ध्यान रखें ।
प्रारम्भ में आँखों की पलकें गिरेंगी किन्तु फिर भी दृढ़ होकर अभ्यास करते रहें । जब तक आँखों से पानी न टपके, तब तक बिन्दु को एकटक निहारते रहें ।
इस प्रकार प्रत्येक तीसरे-चौथे दिन त्राटक का समय बढ़ाते रहें । जितना-जितना समय अधिक बढ़ेगा, उतना ही अधिक लाभ होगा ।
मूर्ति त्राटक
जिन किसी देवी-देवता अथवा संत-सद्गुरु में आपकी श्रद्धा हो, जिन्हें आप स्नेह करते हों, आदर करते हों उनकी मूर्ति अथवा फोटो को अपने साधना-कक्ष में ऊपर दिये गये विवरण के अनुसार स्थापित कर दें ।