बाहर का जीवन भले सीधा-सादा हो लेकिन जिसने यौवनकाल में अपने यौवन की सुरक्षा की है, वह चाहे जो भी संकल्प करे और उसमें लगा रहे तो देर-सवेर वह सफलता के सिंहासन पर पहुँच जाता है और यदि परमात्मा को पाने का संकल्प करे तो अपने परमात्मप्राप्तिरूपी लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेता है । वह अविनाशी पद को पाकर मुक्त हो जाता है । फिर तो जिस पर उसकी नजर पड़ेगी, वह भी धर्मात्मा होकर अपने कुल का उद्धार कर सकता है, इतना वह महान हो जाता है ।
धन्वंतरि महाराज ने अपने शिष्यों से कहा : ‘‘हे वत्सो ! तुमको जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होना हो तो उसके दो सूत्र हैं : संयम और सदाचार ।’’
ये दो ऐसे हथियार हैं जो तुम्हें हर क्षेत्र में विजय दिलवा देंगे । अगर इन दोनों से गिरे तो फिर चाहे तुम्हारे पास कितनी भी सम्पत्ति हो, कितने भी प्रमाण-पत्र हों फिर भी मजदूर की नाईं जीवन की गाड़ी घसीटते-घसीटते मर जाओगे ।
अतः आज तक जो हो गया सो हो गया, जो बीत गया सो बीत गया... आज दृढ़ संकल्प करो कि ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश और पुरुषार्थ परम देव पुस्तकों के दो पृष्ठ रोज पढ़ेंगे ।’ फिर देखो, तुम्हारा जीवन कितना महान हो जाता है ! जैसे पक्षी दो पंखों से उड़ान भरता है, वैसे ही तुम भी संयम और सदाचार इन दो पंखों से उड़ान भरकर अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सफल हो जाओगे ।
स्वप्न में भी यदि बुरे विचार आ जायें तो ‘हरि ॐ... ॐ... ॐ... हे हरि ! हे प्रभु ! ॐ ॐ... नारायण...’ यह भगवन्नाम की गदा मारकर उन्हें भगा देना । ‘मैं भगवान का हूँ, भगवान मेरे हैं... मेरे साथ परमेश्वर हैं, मेरे साथ गुरुदेव की कृपा है...’ - ऐसा विचार करोगे तो बड़ी मदद मिलेगी । गुरु के सान्निध्य एवं मार्गदर्शन से विषय-विकारों से, विघ्न-बाधाओं से छुटकारा पाने की कुंजियाँ प्राप्त होती हैं ।
शाबाश वीर ! शाबाश !! उठो... हिम्मत करो । हताशा-निराशा को परे फेंको । असम्भव कुछ नहीं, सब सम्भव है ।
वो कौन-सा उकदा है जो हो नहीं सकता ?
तेरा जी न चाहे तो हो नहीं सकता ।।
छोटा-सा कीड़ा पत्थर में घर करे ।
इन्सान क्या दिले-दिलबर में घर न करे ?
परमात्मा हमारे साथ है, परमात्मा की शक्ति हमारे साथ है, सद्गुरु की कृपा हमारे साथ है फिर किस बात का भय ? कैसी निराशा ? कैसी हताशा ? कैसी मुश्किल ? मुश्किल को मुश्किल हो जाय ऐसा आत्मखजाना हमारे पास है । संयम और सदाचार - ये दो सूत्र अपना लो बस... !