Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

यौवन का मूल : संयम-सदाचार - 2

हे विद्यार्थी ! ईश्वर की असीम शक्ति तेरे साथ जुड़ी है । तू कभी अपने को अकेला मत समझना । तेरे दिल में दिलबर और गुरु का ज्ञान दोनों साथ हैं । परमात्म-तत्त्व और गुरु-तत्त्व की चेतना इन दोनों का सहयोग लेते हुए, विकारों एवं नकारात्मक चिंतन को कुचलते हुए स्नेह तथा साहस से आगे बढ़ते जाना ।

जो महान बननेवाले पवित्र विद्यार्थी हैं वे कभी नकारात्मक, फरियादात्मक चिंतन नहीं करते । जो महान बनना चाहते हैं वे कभी दुश्चरित्रवान व्यक्तियों का अनुकरण नहीं करते । जो महान बनना चाहते हैं वे कभी हलके कार्यों में लिप्त नहीं होते । ऐसे मुट्ठीभर दृढ़ संकल्पबलवाले व्यक्तियों का ही तो इतिहास गुणगान करता है ।

हे विद्यार्थी ! तू दृढ़ संकल्प कर कि ‘एक सप्ताह के लिए इधर-उधर समय व्यर्थ नहीं गँवाऊँगा ।’ अगर युवक है तो संकल्प करे : ‘किसी भी युवती की तरफ विकारी भाव से निगाह नहीं उठाऊँगा ।’ अगर युवती है तो संकल्प करे : ‘किसी भी युवक की तरफ विकारी भाव से निगाह नहीं उठाऊँगी ।’ अगर देखना ही पड़े या बात करनी ही पड़े तो संयम को, पवित्रता को, गुरु को या भगवान को सर्वत्र उपस्थित समझकर फिर बात करो । हे विद्यार्थी ! तेरे जीवन के इस ओज को तू अभी से सुरक्षित कर दे । हे वत्स !

जैसे बीज में वृक्ष छुपा, अरु चकमक में आग । तेरा प्रभु तुझमें है, जाग सके तो जाग ।।

जो विद्यार्थी प्रतिदिन भगवान का ध्यान करता है, उसकी बुद्धि जरूर तेजस्वी होती है । जो विद्यार्थी प्रतिदिन मौन रहने का अभ्यास करता है, उसका मनोबल बढ़ता है ।

जो विद्यार्थी आहार-विहार का ध्यान रखता है, उसका तन तंदुरुस्त रहता है । जो विद्यार्थी माता-पिता और गुरुजनों की प्रसन्नता के लिए कार्य करता है, वह विद्यार्थी आगे चलकर एक श्रेष्ठ मनुष्य, एक श्रेष्ठ नागरिक व एक श्रेष्ठ साधक होकर अपने साध्य को भी पा लेता है ।

आयुर्वेद के निष्णात वैद्यशिरोमणि धन्वंतरि महाराज के शिष्यों ने उनसे पूछा : ‘‘हे गुरुदेव ! आपकी शिक्षा, आपके उपदेश एवं आपके दिव्य गुणों को हम अपने जीवन में आसानी से कैसे उतारें ? इसका कोई सरल, सचोट एवं सुगम उपाय बताने की कृपा करें ।’’

धन्वंतरिजी बोले : ‘‘हे मेरे प्यारे शिष्यो ! सारी विद्याओं, सारी योग्यताओं एवं सारे सद्गुणों को प्रकटानेवाला, सींचनेवाला और बढ़ानेवाला गुण है ब्रह्मचर्य । तुम ब्रह्मचर्य-व्रत की महिमा जितनी समझोगे और जितना सदाचारी, दिखावारहित एवं सेवाभावी जीवन बिताने का दृढ़ संकल्प करोगे, उतनी ही तुम्हारी आत्मशक्ति विकसित होगी ।

ब्रह्मचर्य-व्रत वह रत्न है, वह अमृत की खान है जो जीवात्मा को परमात्मा से मिला देती है । यदि तुम यौवन-सुरक्षा के नियमों को समझकर उनका पालन करोगे तो तुम आयुर्वेद में तो सफल होओगे ही, आत्मा-परमात्मा को पाने में भी सफल हो जाओगे ।’’

हे मेरे विद्यार्थियो ! तुम भी हलके विद्यार्थियों का अनुकरण मत करना वरन् तुम तो संयमी-सदाचारी महापुरुषों के जीवन का अनुकरण करना । उनके जीवन में कितनी विघ्न-बाधाएँ आयीं फिर भी वे लगे रहे । मीरा के जीवन में कितनी विघ्न-बाधाएँ आयीं, फिर भी मीरा लगी रही ।

    ध्रुव-प्रह्लाद के जीवन में कितने प्रलोभन और बाधाएँ आयीं, फिर भी वे लगे रहे । तुम भी उन्हींका अनुकरण करना । हजार-हजार विघ्न-बाधाएँ आ जायें फिर भी जो संयम, सदाचार, सेवा, ध्यान, भगवान की भक्ति और आत्मवेत्ता गुरु के सत्संग-कृपा का रास्ता नहीं छोड़ता वह जीते-जी मुक्तात्मा, महान आत्मा, परमात्मा के ज्ञान से सम्पन्न सिद्धात्मा जरूर हो जाता है और अपने कुल-खानदान का भी कल्याण कर लेता है । तुम ऐसे कुलदीपक बनना । हरि ॐ... ॐ... ॐ... बल... हिम्मत... दृढ़ संकल्पशक्ति का विकास... पवित्र आत्मशक्ति का विकास... ॐ... ॐ... ॐ...