Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

स्वामी रामतीर्थ का अनुभव

स्वामी रामतीर्थ जब प्राध्यापक थे तब उन्होंने एक प्रयोग किया और बाद में निष्कर्षरूप में बताया कि ‘जो विद्यार्थी परीक्षा के दिनों में या परीक्षा से कुछ दिन पहले विषय-विकारों में फँस जाते हैं, वे परीक्षा में प्रायः असफल हो जाते हैं, चाहे वर्ष भर उन्होंने अपनी कक्षा में अच्छे अंक क्यों न पाये हों । जिन विद्यार्थियों का चित्त परीक्षा के दिनों में एकाग्र और शुद्ध रहा करता है, वे ही सफल होते हैं ।’

ऐसे ही ब्रिटेन की विश्वविख्यात ‘कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी’ के कॉलेजों में किये गये सर्वेक्षण के निष्कर्ष असंयमी विद्यार्थियों को सावधानी का इशारा देनेवाले हैं । इनके अनुसार जिन कॉलेजों के विद्यार्थी अत्यधिक कुदृष्टि के शिकार होकर असंयमी जीवन जीते थे, उनके परीक्षा-परिणाम खराब पाये गये तथा जिन कॉलेजों में विद्यार्थी तुलनात्मक दृष्टि से संयमी थे उनके परीक्षा-परिणाम बेहतर स्तर के पाये गये ।

काम-विकार को रोकना वस्तुतः बड़ा दुःसाध्य है । यही कारण है कि मनु महाराज ने यहाँ तक कह दिया है : ‘माँ, बहन और पुत्री के साथ भी व्यक्ति को एकांत में नहीं बैठना चाहिए क्योंकि मनुष्य की इन्द्रियाँ बहुत बलवान होती हैं । वे विद्वानों के मन को भी समान रूप से अपने वेग में खींच ले जाती हैं ।’