Rishi Prasad- A Spiritual Monthly Publication of Sant Sri Asharam Ji Ashram

वीर्यनाश के दुष्परिणाम

इन दुर्व्यसनों से युवक वीर्यधारण की शक्ति खो बैठता है व उसके बल-बुद्धि, तेज-तंदुरुस्ती, ओज क्षीण होने लगते हैं । उसकी आँखें और चेहरा निस्तेज व कमजोर हो जाते हैं । थोड़े परिश्रम से ही वह हाँफने लगता है, उसकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगता है । अधिक कमजोरी से मूर्च्छा भी आ जाती है । उसकी संकल्पशक्ति कमजोर हो जाती है ।

जो युवक 17 से 24 वर्ष की आयु तक विशेष सावधान होकर संयम रखता है, उसका मानसिक एवं बौद्धिक बल बढ़ जाता है । जीवन भर उसमें उत्साह एवं स्फूर्ति बनी रहती है । जो युवक 20 वर्ष की आयु पूरी होने से पूर्व ही अपने वीर्य का नाश करना शुरू कर देता है, उसकी स्फूर्ति और हौसला पस्त हो जाता है तथा जीवन भर के लिए उसकी बुद्धि कुंठित हो जाती है । मैं चाहता हूँ कि युवावर्ग वीर्य के संरक्षण के कुछ ठोस प्रयोग सीख ले । छोटे-मोटे प्रयोग, उपवास, भोजन में सुधार आदि तो ठीक है परंतु ये अस्थायी लाभ ही दे पाते हैं । कई प्रयोगों से यह बात सिद्ध हुई है ।