जितना कोई अच्छा काम करता है, उतना करनेवाले का हृदय अच्छा होकर उसके भाग्य की रेखाएँ बदलती हैं, बुद्धि में परमात्मा के ज्ञान की और प्रेरणा की धारा विकसित होती है । बुरा कर्म करने से बुद्धि गलत निर्णय करनेवाली बनती है । अच्छा कर्म करनेवाले की बुद्धि भगवान ऊँची बना देते हैं । ऐसा नहीं कि उधर सातवें अरस में बैठकर कोई तुम्हारा खाता लिखता है ।
सब अपने संकल्पों से, विचारों से तुच्छ होते हैं या महान होते हैं । हलके विचार हलके कर्म कराके आदमी को तुच्छ बना देते हैं । ऊँचे विचार ऊँचे कर्म कराके आदमी को ऊँचा बना देते हैं । और यदि कर्म ईश्वरप्राप्ति के लिए करें तो ईश्वर मिल जाता है ।
जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू ।
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ।।
(श्री रामचरित. बा.कां. : २५८.३)
जिसको जिस पर सत्य स्नेह होता है, वह उसको मिल जाता है, वह स्थिति मिल जाती है ।
गांधीजी ने राजा हरिश्चन्द्र का नाटक देखकर संकल्प किया कि ‘मैं सत्य बोलूँगा और परहितकारी जीवन जीऊँगा ।’ गांधीजी के एक ऊँचे संकल्प ने ४० करोड़ हिन्दुस्तानियों को आजाद करा दिया और वे ‘महात्मा गांधी’ बन गये ।
हमारा संकल्प था कि हम ईश्वर को पायेंगे तो हमारे द्वारा भी भगवान करोडों लोगों को सत्संग दिलाते हैं । एक छोटा-सा संकल्प कितना कल्याण कर सकता है ! इसलिए अच्छे विचार करनेवाला आदमी खुद तो ऊँचाई को छूता है, दूसरों को भी ऊँचा उठाता है और हलके विचार करनेवाला खुद तो डूब मरता है, दूसरों को भी गिराता है । रावण का हलका संकल्प, खुद को परेशान किया, पूरी लंका नाश कर दी । रामजी का ऊँचा संकल्प, खुद भी ब्रह्मसुख में और अयोध्यावासियों को भी वैकुंठ के सुख में पहुँचा दिया । श्रीकृष्ण का मधुमय संकल्प, खुद तो मधुमय बंसी बजाते रहे, दूसरों को भी आनंद देते रहे । कंस का अहंकारवाला संकल्प, खुद जरा-जरा बात में डरा और दूसरों को भी डराया और अंत में अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया । इसलिए अच्छे संकल्प, अच्छे कर्म अपना और दूसरों का भला करते हैं तथा बुरे संकल्प, बुरे कर्म अपना और दूसरों का नुकसान करते हैं ।
मन से जैसे संकल्प उठते हैं, वैसा भविष्य में होता जाता है । झूठ-मूठ में भी किये गये शुभ संकल्प धीरे-धीरे पक्के होते जाते हैं और सत्य होने लगते हैं । इसलिए हमेशा मन से शुभ संकल्प ही करने चाहिए ।
आपके मन में अथाह सामथ्र्य है । आप जैसा संकल्प करते हो, समय पाकर वैसा ही वातावरण निर्मित हो जाता है । अब उठो... कमर कसो ! जैसा बनना है, वैसा अभी से संकल्प करो और बनने-बिगड़ने से बचना है तो अपने आत्मस्वभाव को जानने का संकल्प करो ।
शुभ संकल्प करे और उसमें लगा रहे तो देर-सवेर वह सफलता के सिंहासन पर पहुँच जाता है और यदि परमात्मा को पाने का संकल्प करे तो अपने परमात्मप्राप्तिरूपी लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेता है । वह अविनाशी पद को पाकर मुक्त हो जाता है ।
ऋषि प्रसाद – अंक – 259